कोरोना: सुरक्षा और जागरुकता पर भारी पड़ी दहशत (Panic), घर जाने के लिए पास बनाने की उम्मीद में कलक्ट्रेट में उमड़े सैकड़ों श्रमिक

अल्मोड़ा: 29 मार्च 2020 कोरोना वायरस को लेकर सोशल डिस्टेंस जहां पहली जरूरत बताई जा रही है वहीं इस दौर में घर से बाहर रह…

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अल्मोड़ा: 29 मार्च 2020

कोरोना वायरस को लेकर सोशल डिस्टेंस जहां पहली जरूरत बताई जा रही है वहीं इस दौर में घर से बाहर रह कर रोजी रोटी कमाने वालों को इतना असर (Panic) पड़ा है कि वह किसी भी कीमत में घर जाना है।

31 मार्च को सरकार ने उत्तराखंड में फंसे लोगों को अपने घर जाने के लिए एक दिन की मोहलत क्या दी मानों लोगों का अपने घरों को जाने की मुराद पूरा हो गई। सबसे अधिक उत्साहित दिखा है श्रमिक वर्ग इसमें सबसे आगे है।

रविवार को सैकड़ों श्रमिक जिला कार्यालय की ओर से स्थापित कंट्रोल रूम में पहुंच गए। एक ही रट थी कि हमे अपने घर जाना है। इसमें अधिकांश बिहार और नेपाल के हैं।

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हालांकि वहां मौजूद अधिकारी भी उन्हें यही समझा रहे थे कि बेहतर है कि आप जहां हैं वहीं रहें, भोजन पानी की पूरी व्यवस्था प्रशासन द्वारा की जा रही है। लेकिन मजदूर थे कि वह मानने को तैयार ही नहीं थे।

इधर सरकार ने भी केवल उत्तराखंड के भीतर ही परिवहन संचालित करने की छूट दी है ऐसे में यह श्रमिक भी अधिक से अधिक उत्तराखंड की सीमा तक ही यात्रा कर सकते हैं यदि निर्देश पूर्ववत रहे तो तय है कि यह सारी भीड़ प्रदेश के मैदानी बार्डर में एकत्र हो जाएगी।

इधर उपश्रमायुक्त उमेश चन्द्र राय ने बताया कि शासर के निर्देशों के अनुसार ही लोगों को परिवहन की सुविधा मिलेगी।

उन्होंने कहा कि सरकार के निर्देशों के अनुसार ही कार्य होगा लेकिन लोगों से यही अपील है कि जो जहां पर है वहीं पर रहे भोजन पानी की व्यवस्था प्रशासन कर रहा है।

श्रमिक आत्माराम ने कहा कि उनकी रोटी छूट गई है कमरे का किराया देने को पैसे नहीं है वह यहां रह कर क्या करेंगे उन्हें उनके प्रदेश बिहार भेज दिया जाए। उन्होंने बिहार सरकार से भी मांग की है कि उन्हें अपने प्रदेश आने की व्यवस्था की जाए

इधर जिस तरह जिलाकार्यालय के पास स्थापित कंट्रोल रूम में आने के लिए श्रमिकों की भीड़ उमड़ी उससे यह साफ हो गया कि लोग अब भीड़ के रूप में तब्दील हो गए हैं कुछ भी हो उन्हें अपने घर जाना है।

यही स्थिति अन्य स्थानों पर भी है मैदानी क्षेत्रों में भी कई उत्तराखंडी घर आने के लिए अपने किराए के कमरों को छोड़ चुके हैं। ऐसे में सोशल डिस्टेंस केवल एक शब्द बन कर रह गया है क्योंकि भीड़ कई बार इस नियम को जाने अनजाने में तोड़ रही है।

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