उत्तराखण्ड में पुर्नजागरण के पुरोधा थे मुंशी हरि प्रसाद टम्टा

डॉ संजय कुमार टम्टा 26 अगस्त 2018 को रायबहादुर मुंशी हरि प्रसाद टम्टा का 132 वा जन्मदिन है।रक्षा बंधन के दिन 26 अगस्त 1887 को…

डॉ संजय कुमार टम्टा

26 अगस्त 2018 को रायबहादुर मुंशी हरि प्रसाद टम्टा का 132 वा जन्मदिन है।
रक्षा बंधन के दिन 26 अगस्त 1887 को पर्वतीय अंचल के अंबेडकर कहे जाने वाले रायबहादुर मुंशी हरि प्रसाद टम्टा का जन्म एक ताम्र शिल्पकार परिवार में हुआ। अगस्त माह में पहाड़ो में खूब हरियाली होती है और इसी वजह से उनका नाम हरि रखा गया। वह बाल्यकाल से ही मेधावी व प्रखर बुद्वि के थे। उनके पिता गोविन्द प्रसाद प्रसाद टम्टा और माता गोविन्दी देवी थे। उनके पिता की मृत्यु अल्पकाल में ही होने के कारण हरि प्रसाद जी अपने मामा कृष्ण टम्टा के संरक्षण में रहे। अछूत जाति के लोगों पर एक प्रतिबंध था कि वह अपने बच्चों का प्रतिभाशाली नाम नही रख सकते थे।

परिवार के पेशे का नाम मूल नाम के साथ जोड़ लिया जाता था जिससे हमेशा निम्नता का नाम होता रहे उस समय ब्रिटिश सरकार की शिक्षा नीति के कारण आम लोगों में सामाजिक एंव राजनैतिक जागृति आने लगी थी। अतः बालक हरि को मिशनरी स्कूल में भर्ती कर दिया गया उन्होने प्राइमरी कक्षा में अव्वल स्थान प्राप्त किया, वर्ष 1902 में हरि प्रसाद जी ने मैट्रिक परीक्षा पास की तथा उर्दू में डिस्टीक्शन प्राप्त करने के कारण उन्हे मुंशी की उपाधि से नवाजा गया। तत्कालीन समय में अछूत वर्ग के उत्तराखण्ड से मैट्रिक पास करने वाले पहले विद्यार्थी थे।

हरि प्रसाद जी को बचपन मे जब जेबखर्च के लिये पैसे मिलते तो वह उससे स्लेट, चॉक आदि लेकर बच्चों के साथ लिखने पढ़ने का खेल किया करते थे जबकि उनके भाई लालता प्रसाद जेब खर्च से कुछ ना कुछ खरीद लाते थे तथा गांव की गली में दुकान खोल लेते थे। गुणों के अनुसार ही आगे चलकर लालता प्रसाद कुमाऊ के प्रसिद्व व्यापारी एंव उद्यमी बने तथा मुंशी जी प्रख्यात समाज सुधारक के रूप में जाने गये।

रचनात्मक सुधार के लिये हरिप्रसाद जी 1903 से सक्रिय हुए और जीवन भर शोषित वर्ग के अधिकारों की सुरक्षा के लिये प्रयासरत रहे। जून 1934 में पत्रकारिता क्षेत्र में सक्रिय हुए और समता समाचार पत्र का प्रकाशन शुरू किया।

लोक सेवा और परोपकार के धनी हरि प्रसाद टम्टा जी ने जातीय चेतना जागृत करने के उद्देश्य से सबसे पहले वर्ष 1905 में टम्टा सुधारक सभा की स्थापना की जो आगे चलकर 1914 में कुमांऊ शिल्पकार सभा में तब्दील हो गयी। 1920 से हरि प्रसाद जी ने इस सभा के माध्यम से आंदोलन किये और 1926 में 6 वर्षो के निरंतर प्रयासों के बाद तत्कालीन सामाजिक व्यवस्था के विरूद्व यह एक बड़ी विजय थी जब वंचित लोगो को शिल्पकार नाम से सम्मान प्राप्त हुआ।

पिछड़े समाज के लोगों में शिक्षा के प्रचार प्रसार के लिये भी वह प्रयासरत रहे। अल्मोड़ा में उन्होने कई रात्रिकालीन विद्यालय खुलवायें, निर्धन लोगों को छात्रवृत्ति दी और कई छात्रों को अपने खर्च से पढ़ाया और उच्च शिक्षा के लिये उन्हे प्रोत्साहित भी किया। वाचनालय, पुस्तकालय के साथ ही 150 प्राथमिक विद्यालय खोले।

आर्थिक सुधार और जातीय उन्नति के लिये हरि प्रसाद टम्टा जी पुश्तैनी कला शिल्प उद्योग को जीवित रखना बहुत आवश्यक समझते थे। पर्वतीय शिल्पकारों को वह अपने पुश्तैनी कला शिल्प उद्योग को जीवित रखने के लिये प्रोत्साहित करते थे। उन्होने पर्वतीय शिल्पकारों को अपने परंपरागत धंधे को जिंदा रखने और इसे निरंतर आगे बढ़ाने हेतु नई तकनीक और नये डिजायनों को बनवाकर प्रोत्साहित किया। इनके प्रयत्नों से ही दलित समाज में उस समय बारातों की फिजूलखर्ची, आतिशबाजी, मद्यपान, फुलवारी आदि सब बंद हो गयी।

अल्मोड़ा जनपद को यातायात सुविधा एंव संचार साधनों से जोड़ने के लिये जनपदीय विकास की दृष्टि और स्थानीय आर्थिक जीवन स्तर ऊचा उठाने के लिये मुंशी हरिप्रसाद टम्टा जी ने सर्वप्रथम 1920 में मोटर वाहन कंपनी हिल मोटर ट्रांसपोर्ट कंपनी का श्री गणेश किया।

पर्वतीय अंचल के कठोर सामाजिक व्यवस्था के विरूद्व अल्मोड़ा में आर्य समाजीय प्रभाव के कारण शिल्पकारों के जनेऊ पहनने पर स्थानीय सर्वणों के द्वारा पहले कड़ा विरोध हुआ और इसके खिलाफ अदालत में मुकदमा भी चला। टम्टा जी ने इसे जातीय अपमान समझकर अपने खर्चे से मुकदमा लड़ा और विजयी हुए। अल्मोड़ा डिस्ट्रिक्ट बोर्ड और नगरपालिका में कार्यरत चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों खासकर बाल्मिकी समाज की महिला कर्मचारियों को प्रसव अवकाश में छुटटी व जाड़ों में जूते और कंबल दिलवाने, गंभीर रोग होने पर दैनिक मजदूरी काटने के खिलाफ उन्होने जोरदार संघर्ष किया आज भी बाल्मिकी समाज के लोग मुंशी जी के इस योगदान को याद करते है। हरि प्रसाद जी ने 1907 व 1935 में पड़े अकाल पीड़ितो की मदद के लिये पूरे कुमाऊ प्रदेश में जगह जगह पर भोजन सामग्री की सस्ती दुकाने खुलवायी।

द्ययोली डांडा शिल्पकार सम्मेलन से पूर्व उन्होने कुमाऊ के गांवो का पैदल दौरा कर महसूस किया कि अधिकतर शिल्पकार भूमिहीन है और बंधुवा मजदूरी करते है और अपने बच्चों को स्कूल नही भेज पाते है। इसके बाद उन्होने 24 सितंबर 1935 को विशाल शिल्पकार सम्मेलन आयोजित किया जिसे देखकर पूरा समाज दंग रह गया।

सेना में भर्ती का रास्ता भी उनके अथक मेहनत का फल था। उनके प्रयासों से शिल्पकार समाज में आर्थिक स्वावलंबन की भावना जागृत हुई। शिल्पकार युवाओं को फौज में तकनीकी पदो पर भर्ती किया जाने लगा। लगभग 35 हजार एकड़ भूमि भूमिहीन शिल्पकारों को आवंटित कराकर उन्होने समाज के स्तर को उठाने का कार्य किया।

द्वितीय गोलमेज सम्मेलन के समय उन्होने अल्मोड़ा से एक तार ब्रिटिश सरकार को भेजा जिससे भारतीय वंचित एंव शोषित समाज के नेतृत्व का मौका भीमराव अंबेडकर को मिला। राष्ट्रीय स्तर पर बाबा साहब भीमराव अंबेडकर द्वारा चलाये जा रहे अछूतोद्वार कार्यक्रम को टम्टा जी ने उत्तराखण्ड में भी संचालित किया। परिणाम स्वरूप एक ही नौले से जल ग्रहण करना, मंदिर प्रवेश जैसे कार्यक्रम आयोजित किये गये। अंबेडकर की विचारधारा को उत्तराखण्ड में पहुचानें में टम्टा जी का विशेष योगदान रहा।

19 वी शताब्दी के पूर्वाद् से ही भारत में पुर्नजागरण के अनके पुरोधाओं ने समाज में व्याप्त बुराईयों व कुरीतियों को समाप्त करने के लिये अपने जीवन का सर्वस्य न्यौछावर कर दिया। उत्तराखण्ड में भी मुंशी हरिप्रसाद टम्टा जी को पुर्नजागरण के पुरोधा के रूप में याद किया जाता है।