राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन की शोध उपलब्धियों को प्रसार की दरकार—प्रो. गौड़

Research achievements of National Himalayan Study Mission need to be disseminated

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डेस्क— राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन अंतर्गत दिल्ली में हुई एक कार्यशाला में परियोजनाओं के शोध परिणामों को दूसरे चरण में प्रसार देने की जरूरत जताई गई.

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वन पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय भारत सरकार के अपर सचिव रवि अग्रवाल एवं सयुक्त सचिव श्री अरविंद नौटियाल के मार्गदर्शन में यह कार्यशाला संपन्न हुई.
इस बैठक से लौटकर मिशन के नोडल अधिकारी इंजीनियर किरीट कुमार ने बताया कि जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण एवं सतत् विकास संस्थान कोसी कटारमल की ओर से राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन की तीसरी निगरानी और अनुश्रवण कार्यशाला इस बार दिल्ली भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी में संपन्न की गई.

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इस दो दिवसीय कार्यशाला में 32 संचालित परियोजनाओं को मूल्यांकन के लिए बुलाया गया. विभिन्न परियोजना प्रमुखों ने विभिन्न तकनीकी सत्रों में अपनी परियोजनाओं के कार्यों, प्रगति, उपलब्धियों, शोध कार्यों आदि को प्रस्तुत किया और विषय विशेषज्ञों द्वारा उनका ठोस मूल्यांकन किया गया तथा उन्हें आवश्यक सुझाव भी दिए गए.

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जल संरक्षण, जैव विविधता संरक्षण, आजीविका विकल्प, दक्षता/कौशल विकास व हानिप्रद पदार्थों के प्रबंधन आदि क्षेत्रों में कार्य कर रही अनेक परियोजनाओं की कार्यप्रगति पर विषय विशेषज्ञों ने अपनी राय दी और उनके कार्येां की सरहना की. जैव विविधता संरक्षण और आजीविका विकल्प सुझाने वाली अनेक परियोजनाओं के माॅडलों को अन्य हिमालयी राज्यों व संस्थानों तक किस प्रकार पहुंचाया जाए इसपर गहन विचार मंथन किया गया.

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बताया गया कि अनेक परियोजनाओं की उपलब्धियों व खोजे गए माॅडलों के पेटेंट कराने की प्रक्रिया भी चल रही है. विषय विशेषज्ञों ने परियोजनाओं के तहत चल रहे कार्यों में व्यापकता लाने और परियोजनाओं से तैयार उत्पादों, माॅडलों, उपकरणों, व ज्ञान सामग्री को वृहद स्तर पर हिमालयी समाज के हित में उपयोग में लाने की बात कही.

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जल संरक्षण की दिशा में जल अभ्यारण्य , धारा विकास, जलस्रोतों के संरक्षण, पर्वतीय जलविज्ञान, आदि क्षेत्रों में अध्ययन परिणामों और शोध प्रारूपों को व्यापक स्तर पर हिमालयी भू-भाग में जल संकट से जूझने वाले राज्यों में लागू करने की बात विषय विशेषज्ञों द्वारा कही गई. विषय विशेषज्ञों द्वारा परियोजना कार्याें के दौरा उत्पन्न डेटाबेस को भी संरक्षित और विभिन्न शोध अनुसंधानों में उपयोग करने की बात कही.

कहा कि विकास परियोजनाओं, मौसम विज्ञान, जल संरक्षण, जैव विविधता संरक्षण व कृषि क्षेत्र से जुड़े संकलित आंकड़े महत्वपूर्ण हो सकते हैं. दीर्घ कालिक निगरानी क्षेत्रों के ज्ञान को और विस्तारित करने का सुझाव भी बौद्धिक सत्र में विषय विशेषज्ञों द्वारा दिया गया. शोध परियोजनाओं के कार्याें व उपलब्ध शोध ज्ञान तथा समाज की आवश्यकताओं के बीच के दूरियों को कम करने की भी बात कही गई. कहा कि गहन अनुसंधान, आपसी तालमेल और संस्थानों के बीच नेटवर्क द्वारा इसे पाटा जा सकता है.


इस मूल्यांकन कार्यशाला और बौद्धिक सत्र में वन पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय भारत सरकार के अपर रवि अग्रवाल, संयुक्त सचिव अरविंद नौटियाल वरिष्ठ वैज्ञानिक प्रो. वी.के गौड़, कर्नाटक से वरिष्ठ वैज्ञानिक प्रो. जीके काड़ीकोटी, पंजाब केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. आर.के कोहली संस्थान के निदेशक डाॅ आरएस रावल, गुवाहाटी से एनआईडीपीआर के निदेशक डा0 आरएम पंत, पद्मश्री ललित पाण्डे, जेएनयू से प्रो. एपी डिमरी, कुमाऊ विश्वविद्यालय नैनीताल से डाॅ सी0सी0पंत, आईआईटी रूड़की से एसके मिश्रा, मंत्रालय से सलाहकार ललित कपूर, आईएआरआई से डाॅ डीसी उप्रेती, एससी गड़कोटी, डाॅ सोनाली बिष्ट, प्रो अरूण .के .सर्राफ, डाॅ एसके भरथरिया, प्रो0 वरूण जोशी, प्रो0 के. भटटाचार्य सहित विषय विशेषज्ञों ने परियोजनाओं का मूल्यंाकन किया।