सावधान— climate change बन चुका है क्लाइमेट क्राइसेस, अब चेत जाने का वक्त अन्यथा हो जाएगी देर,पर्वत दिवस पर आयोजित सेमिनार पर वैज्ञानिकों ने की कई चुनौतियों पर चर्चा

Climate change Climate Crisis, scientists discuss many challenges at the seminar organized on Mountains Day

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उत्तरा न्यूज अल्मोड़ा। ग्रीन हाउस गैस के नाम से जानी जाने वाली कार्बन गैसों का उत्सर्जन काफी चिंताजनक स्तर पर पहुंच चुका है। कार्बन गैसों का उत्सर्जन न्यूनतम 390 पीपीपी से बढ़कर 403 से 408 तक पहुंच गया है। जिसका भार समूचे हिमालय पर पड़ रहा है।

यही नहीं इसके चलते हिमालयी क्षेत्रों का तापमान भी बढ़ रहा है। हिमालय का तापमान किसी भी हालत में 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक नहीं होना चाहिए। लेकिन हालात ऐसे हैं कि इसे नियंत्रित रखना एक चुनौतीपूर्ण बन चुका है। ऐसा नहीं हुआ तो हिमालयी क्षेत्र में ​तापमान में चिंताजनक स्थिति सामने आ जाएगी।

अन्तर्राष्ट्रीय पर्वत दिवस के अवसर पर पर्यावरण संस्थान द्वारा तीन दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन का बुधवार समापन हुआ। इसी सम्मेलन में यह विचार वैज्ञानिकों की ओर से आए। समापन अवसर पर इस सम्मेलन के विभिन्न विषयों से जुड़े मुख्य प्रतिनिधियों ने हिमालय की संरक्षण एवं विकास सम्बन्धी आवश्यकताओं को प्रभावी रूप से लागू करने हेतु विभिन्न संस्थाओं के मध्य आपसी तालमेल की आवश्यकता पर बल दिया गया।

इस आशय के विशेष सत्र की अध्यक्षता यूकोष्ट देहरादून के डीजी डा. डोभाल ने की, इस सत्र में भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण, कलकत्ता के निदेशक डाॅ॰ ए. माओं, भारतीय प्राणि सर्वेक्षण, कलकत्ता के निदेशक डाॅ॰ लक्ष्मीकान्त, हिमालय क्षेत्र की नदियों पर विशिष्ट अनुभव रखने वाले प्रोफेसर जयन्त बन्धोपाध्याय, आई.यू.सी.एन. की डाॅ॰ अर्चना चटर्जी, वन विभाग जम्मू के वरिष्ठ अधिकारी श्री जसरोटिया, एवं संस्थान के निदेशक डाॅ0 रावल मुख्य रूप से उपस्थित रहे।

इस विशिष्टि सत्र में हिमालयन अकादमी की अवधारणा को मूर्त रूप देने की 15 विभिन्न संस्थानों की सहमति बनी जिसमें हिमालय में आज तक के हुए अध्ययन एवं आंकड़ों का संकलन किया जायेगा जिसके विष्लेशण से हिमालय के संरक्षण एवं सतत विकास हेतु कार्यक्रम एवं नीतियां बनायी जायेंगी।
आज के कार्यक्रम की मुख्य विशेषता डाॅ॰ आर.एस. टोलिया स्मारक व्याख्यान रहा जिसे उत्तराखंड के पूर्व मुख्य सचिव एस.के. दास ने दिया जिसका शीर्षक हिमालय क्षेत्र के जनसामान्य हेतु स्थानीय प्राकृतिक संसाधनों का तर्कसंगत उपयोग था।

मुख्य कार्यक्रम में हिमालयी क्षेत्र के वनस्पतियों पर तापमान वृद्धि के प्रभाव पर एक सत्र का आयोजन चिया, नैनीताल के प्रो॰ एस.पी. सिंह की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ जिसमें उनके द्वारा हिमालय क्षेत्र के राज्य कश्मीर, उत्तराखंड एवं सिक्किम में छः विभिन्न संस्थाओं द्वारा उनकी नेतृत्व में चलाये जा रहे शोध परिणामों पर चर्चा की एवं बताया कि हिमालय की वृक्ष रेखा तापमान वृद्धि से उच्च शिखर को खिसकने का खतरा अभी फिलहाल नही दिखाई पड़ता, हलांकि कुछ वनस्पतियाँ जैसे रोडोडेंन्ड्रान की झाड़ी प्रजाति ऊपर की ओर बढ़ रही है।

एक अन्य विशेष सत्र का आयोजन टाटा ट्रस्ट-हिमोत्थान, देहरादून द्वारा किया गया, जिसमें उन्होने पर्वतीय क्षेत्र में मुख्यतः जल, कृषि एवं आजिविका के अन्र्तसम्बन्ध को और सुदृढ़ करने की आवश्यकता पर बल दिया, इस सत्र की अध्यक्षता संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक ई. किरीट कुमार ने की, जिसमे दिल्ली से आये डाॅ किशोर कुमार, हिमोत्थान के राजेन्द्र कोश्यारी, विनोद कोठारी, भूपाल बिष्ट आदि ने अपनी प्रस्तुतियां दी।

ज्ञातव्य है कि इस तीन दिवसीय सम्मेलन में 33 विभिन्न संस्थानों के लगभग 200 से भी अधिक प्रतिनिधियों ने भागीदारी की। संस्थान के वैज्ञानिको एवं क्षेत्रीय ईकाईयों से आये हुए प्रतिनिधियों सहित लगभग 250 से भी अधिक लोगों ने भागीदारी की। इस सम्मेलन के दौरान राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन के अन्र्तगत विभिन्न प्रदर्शनीयाँ एवं बुक स्टाॅल भी लगाये गये। इस सम्मेलन से निकलने वाले मुख्य बिन्दुओं को हिमालय की नीति निर्धारण में होने वाले योगदान को शीघ्र ही पर्यावरण मंत्रालय, भारत सरकार को सौंपा जायेगा।