शिव प्रसाद सेमवाल की गिरफ्तारी के मायने : मेरी आवाज एक जुर्म है क्योंकि मैं उनके सुर में सुर नही मिलाता

हर्षवर्धन पाण्डेय देहरादून। सच को सच कहने की कीमत क्या होती है अगर यह जानना है तो आपको सुद्धोवाला जेल जाना होगा। जहां उत्तराखण्ड के…

shiv prasad semwal

हर्षवर्धन पाण्डेय

देहरादून। सच को सच कहने की कीमत क्या होती है अगर यह जानना है तो आपको सुद्धोवाला जेल जाना होगा। जहां उत्तराखण्ड के निर्भीक और जुझारू पत्रकार शिवप्रसाद सेमवाल रंगदारी मांगने के आरोप में विगत शुक्रवार से जेल में बंद है।

शिव प्रसाद सेमवाल की गिरफ्तारी की पटकथा तब लिखी जानी शुरू हुई जब नीरज कुमार नामक व्यक्ति ने सहसपुर थाने में जाकर रिपोर्ट दर्ज करवाई।

शिव प्रसाद सेमवाल का नाम उत्तराखण्ड के पत्रकारों मे काफी चर्चित है। पर्वतजन पत्रिका गढ़वाल में नवोदित पत्रकारों की पाठशाला तो रही ही है। पर्वतजन पत्रिका और पर्वतजन डॉट कॉम के माध्यम से शिव प्रसाद सेमवाल ने उत्तराखण्ड से जुड़े अनगिनत मामलों में सच को सामने लाने का कार्य किया और उन खबरों को प्रकाशित करने का दुत्साहस किया है जो कि मुख्यधारा की मीडिया की चकाचौंध में खबर नही बन पाती और अपनी इस कारगुजारी से शिवप्रसाद सेमवाल ने उन सभी को अपना विरोधी बना लिया जिनके गलत कारनामों को उजागर करने का साहस उन्होने किया है।

दिन, हफ्ते और साल गुजरते जायेगें। और कुछ दिनों में हो सकता है कि उन्हे जमानत भी मिल जाये। लेकिन शिव प्रसाद सेमवाल के साथ जो हुआ वह देखकर अब पत्रकार जनता के मुद्दे उठाने का कार्य करने का साहस करेगे ऐसा लगता नही है। उनकी गिरफ्तारी के बाद से पूरे समाज के एक अजीब सा सन्नाटा पसरा पड़ा है और उत्तराखण्ड की जनपक्षरधर ताकते भी ना जानें क्यों मौन है। शिव प्रसाद सेमवाल की गिरफ्तारी एक तरह का संकेत भी दे रही है कि अगर आपके आसपास कुछ गलत हो रहा है तो चुप रहो नही तो अंजाम भुगतने के लिये तैयार रहो। लेकिन शिव प्रसाद सेेमवाल कुछ अलग ही मिट्टी के बने हुए और उन जैसे लोगों के लिये क्रांतिकार शायर पाश की यह कविता फिट बैठती है।

मैं घास हूं तुम्हारे हर किये धरे पर उग आऊंगा

मैं घास हूँ
मैं आपके हर किए-धरे पर उग आऊँगा

बम फेंक दो चाहे विश्‍वविद्यालय पर
बना दो होस्‍टल को मलबे का ढेर
सुहागा फिरा दो भले ही हमारी झोपड़ियों पर

मेरा क्‍या करोगे
मैं तो घास हूँ हर चीज़ पर उग आऊँगा

बंगे को ढेर कर दो
संगरूर मिटा डालो
धूल में मिला दो लुधियाना ज़िला
मेरी हरियाली अपना काम करेगी…
दो साल… दस साल बाद
सवारियाँ फिर किसी कंडक्‍टर से पूछेंगी
यह कौन-सी जगह है
मुझे बरनाला उतार देना
जहाँ हरे घास का जंगल है

मैं घास हूँ, मैं अपना काम करूँगा
मैं आपके हर किए-धरे पर उग आऊँगा ।

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