वीपीकेएएस की ओर से आयोजित कृषि मेले में काश्तकारों को दी उन्नत खेती की जानकारी,गेहूं की दो प्रजातियों का किया विमोचन

वीपीकेएएस की ओर से आयोजित कृषि मेले में काश्तकारों को दी उन्नत खेती की जानकारी,गेहूं की दो प्रजातियों का किया विमोचन

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उत्तरा न्यूज अल्मोड़ा। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान(Indian Agricultural Research Institute) के विवेकानन्द पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के प्रयोगात्मक प्रक्षेत्र, हवालबाग में आयोजित रबी किसान मेले में दूर दूर से आए किसानों को उन्नत खेती की जानकारी दी गई। संस्थान के निदेशक ने इस मौके पर गेहूं की दो प्रजाति का विमोचन भी किया गया।

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कार्यक्रम के मुख्य अतिथि एवं निदेशक डा. अरूणव पट्टनायक ने संस्थान द्वारा पर्वतीय कृषि के विभिन्न पहलुओं पर किये जा रहे शोध कार्याे के विषय में अवगत कराया। उन्होंने कहा कि प्रदेश के विकास हेतु किसानों का आर्थिक रूप से मजबूत होना अत्यन्त आवश्यक है। उन्होंने कृषि एवं इससे जुड़े अन्य विभागों को एक स्थान पर लाकर कृषि मेला आयोजित करने हेतु संस्थान के कर्मचारियों की सराहना की साथ ही कहा कि इन कार्यों द्वारा किसानों की आय निश्चित ही दोगुनी की जा सकती है।

उनके द्वारा संस्थान के स्टाॅल पर उपलब्ध बीजों का किसानों द्वारा प्रयोग में लाने तथा किसानों से गाॅंवों में जाकर प्रेरक की भूमिका निभाने का कहा गया। उन्होंने कहा कि संस्थान द्वारा अंगीकृत की गयी एग्री केनन गन द्वारा बन्दरों से निजात पाने में अत्यधिक सफलता मिली है तथा इसे ग्रामीण स्तर पर अपनाये जाने पर बल दिया गया।

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इस अवसर पर गोविन्द बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयी एवं पर्यावरण सतत विकास संस्थान, अल्मोड़ा के निदेशक डा. आर. एस. रावल द्वारा पर्वतीय क्षेत्रों में परम्परागत फसल प्रजातियेां के संरक्षण हेतु कार्य करने पर बल दिया गया। उन्होंने कहा कि यह संस्थान पर्वतीय कृषि की उन्नत हेतु एक अहम भूमिका निभा रहा है एवं इसके कार्यस्वरूप पर्वतीय क्षेत्र से पलायन को रोका जा सकता है।

संस्थान के पूर्व निदेशक डा. जे.सी. भट्ट ने संस्थान के कार्यों की सराहना करते हुए सभी सरकारी एवं गैर-सरकारी संस्थाओं द्वारा एक जुट होकर कार्य किये जाने पर बल दिया। उन्होंने संस्थान द्वारा प्राप्त किये गये विभिन्न पुरस्कारों हेतु संस्थान के निदेशक एवं समस्त कर्मचारियों को बधाई दी एवं आशा व्यक्त की कि भविष्य में भी संस्थान पर्वतीय कृषि के विकास हेतु एवं नवाचार लाने में तत्पर रहेगा।


जिला मुख्य कृषि अधिकारी प्रियंका सिंह एवं जिला उद्यान अधिकारी द्वारा कृषकों हेतु केन्द्र एवं राज्य सरकार द्वारा जनपद में चल रहे विभिन्न परियोजनाओं के विषय में विस्तृत जानकारी दी गयी एवं आशा व्यक्त की गयी कि इन परियोजनाओं को अपना कर कृषकों की आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ बनाया जा सकता है।
केन्द्रीय शीतोष्ण बागवानी संस्थान के प्रभारी डा. राजनारायण द्वारा पर्वतीय क्षेत्रों हेतु उपयुक्त विभिन्न शीतोष्ण फलों एवं सब्जियों की खेती के बारे में जानकारी दी गयी।

किसान मेले के अवसर पर संस्थान के फसल सुधार विभाग के प्रभागाध्यक्ष डा. लक्ष्मी कांत ने समस्त आगन्तुकों का स्वागत करते हुए पर्वतीय कृ़िष के क्षेत्रों में संस्थान द्वारा चलायी जा रही विभिन्न गतिविधियों पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि विगत 95 वर्षो से संस्थान 17 प्रमुख फसलों पर कार्य कर रहा है एवं आजतक संस्थान द्वारा कुल 158 प्रजातियों का विमोचन किया गया। उन्होंने बताया कि संस्थान द्वारा उन्नत प्रजातियों की किस्मों का विकास, समेकित नाशी जीव प्रबन्धन, जल संरक्षण के साथ-साथ कृषि प्रसार के क्षेत्र में निरन्तर कार्य किये जा रहे हैे।


इस अवसर पर, संस्थान द्वारा दो प्रजातियों क्रमशः गेहूॅं की वी.एल. गेहॅंू 967 एवं जौ की वी.एल. जौ 130 का विमोचन किया गया साथ ही प्रगतिशील किसानों को सम्मानित भी किया गया है। अनुसूचित जाति उप परियोजना के अन्तर्गत संस्थान द्वारा विभिन्न क्षेत्रों से कृषक समूहों हेतु संस्थान द्वारा विकसित विवेक मंडुवा थ्रैसर कम पर्लर का वितरण भी किया गया। प्रक्षेत्र में आयोजित प्रदर्शनी में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अनेक संस्थानों, कृषि विज्ञान केन्द्रों एवं सरकारी तथा गैर सरकारी संस्थानों द्वारा प्रतिभागिता की गयी एवं प्रदर्शनियाॅं लगायी गयी। इस अवसर पर विभिन्न संस्थानों एवं विभागों के वैज्ञानिक एवं अधिकारी गण उपस्थित थे।


मेले में उत्तराखण्ड के विभिन्न क्षेत्रों से लगभग 700 कृषकों ने प्रतिभागिता की एवं विभिन्न फसलों एवं प्रदर्शनियों का भ्रमण किया। मेले में आयोजित कृषक गोष्ठी में पर्वतीय कृषि से संबंधित विभिन्न पहलुआंें पर महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान की गयी साथ ही कृषकों की विभिन्न समस्याओं का कृषि वैज्ञानिकों द्वारा त्वरित समाधान किया गया। किसान मेले में कृषक गोष्ठी का संचालन डा. निर्मल चन्द्रा, कार्यक्रम का संचालन डा. कुशाग्रा जोशी एवं धन्यवाद प्रस्ताव डा. जे.के. बिष्ट ने किया।

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