क्या इसे तीसरे मोर्चे का आगाज माना जाये

ऋषिकेश। कुछ दिनों पूर्व ऋषिकेश में भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस से पूर्व में जुड़े नेताओं के जमावड़े ने तीसरे मोर्चे की संभावना फिर से…

ऋषिकेश। कुछ दिनों पूर्व ऋषिकेश में भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस से पूर्व में जुड़े नेताओं के जमावड़े ने तीसरे मोर्चे की संभावना फिर से जगा दी है। इनमें से अधिकतर पूर्व में भाजपा व कांग्रेस में लंबे समय से काम कर चुके पके पकाये कार्यकर्ता है और उनके 2017 के चुनावी मैदान में खम ठोकने से दोनो ही पार्टियों को खासा नुकसान हुआ था। यहा तक कि मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार माने जा रहे अजय भट्ट को अपनी ही पार्टी के बागी उम्मीदवार प्रमोद नैनवाल के चुनावी मैदान में आ जाने से हार का सामना करना पड़ा था। हालांकि अभी भी तीसरा मोर्चा दूर की कौड़ी ही है मगर इसने कम से कम दोनो पार्टियो के क्षत्रपो की पेशानी में बल तो डाल ही दिये है। पिछले माह अपने उत्तराखण्ड दौरे के दौरान भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित साह ने बागी व पार्टी से नाराज हो रहे नेताओं को साथ लाने को कहा था लेकिन समीकरण कुछ ऐसे है कि भाजपा के स्थानीय नेता अपने राजनीतिक भविष्य के लिये इन्हे पार्टी में दुबारा शामिल होने से हर हाल में रोकने का प्रयास करेगे। यही बात कांग्रेस पर भी लागू होती है। कांग्रेस प्रदेश सरकार की अलोकप्रियता का सहारा लेकर आने वाले 2019 के लोकसभा चुनाव में दुबारा वापसी का सपना देख रही है लेकिन उसे 2017 का विधानसभा चुनाव का मंजर भी याद है जब उसके कददावर नेता भाजपा की शरण में चले गये थे और बांकी रही सही कसर बागियों के चुनावी मैदान में उतरने ने पूरी कर दी।

 

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अगर 2017 के विधानसभा चुनावों का आंकड़ा देखे तो दर्जनो सीटो पर बागियों के चुनाव लड़ने से चुनावी परिदृश्य ही बदल गया था। अगर बागी लंबे समय तक साथ आकर कोई तीसरे मोर्चे की बात पर अडिग रहते है तो राज्य की राजनीति में तीसरे मोर्चे का अभ्युदय हो सकता है। इनमे से कई नेता खासे प्रभाव वाले है और अब यह बागी राज्य के बुनियादों सवालो की बात कहकर तीसरे मोर्चे की बात तो कर रहे है लेकिन भाजपा व कांग्रेस में रहकर उन्होने कभी इन सवालो को उठाया ही नही। अब देखना यह है कि तीसरे मोर्चे की यह कवायद हकीकत बन पाती है या नही।
यह मोर्चा भविष्य में आगे जाकर कोई राजनैतिक विकल्प बन पायेगा या नही यह तो भविष्य के गर्त में छुपा है लेकिन बागी नेताओं के एकमंच पर आने से दोनो राष्ट्रीय पार्टियों का शीर्ष नेतृत्व चितिंत जरूर हो गया है। अगर क्षेत्रीय ताकते और बागियों का मोर्चा एक साथ आ गया तो दोनो  पार्टियो के क्षत्रपो के लिये दिक्क्ते पैदा कर सकता है।
बैठक में यह नेता रहे मौजूद पूर्व मंत्री दिनेश धनै,पूर्व विधायक सुरेश जैन, ओम गोपाल रावत, 2017 का विधानसभा चुनाव लड़ चुके प्रमोद नैनवाल आर्येद्र शर्मा, संदीप गुप्ता,सूरत राम नौटियाल, महेन्द्र नेगी, गोविंद अग्रवाल, ज्योति सजवाण आदि मौजूद रहे। वही काशीपुर से राजीव अग्रवाल और आशा नौटियाल, बृजमोहन कोटवाल और अंतरिक्ष सैनी किन्ही कारणवश बैठक में प्रतिभाग नही कर पाये।