अनिवार्य सेवानिवृत्ति का फॉर्मूला संविधान के विपरीत: पाठक, कहा शिक्षकों को दोष देने से अच्छा स्कूलों की बुनियादी सुविधाओं पर ध्यान दे सरकार, फैसला वापस नहीं लिए जाने पर होगा विरोध

अल्मोड़ा। माध्यमिक शिक्षा में स्नातक वेतनक्रम में कार्यरत 50 से अधिक उम्र के एलटी अध्यापकों के लिए सरकार द्वारा अनिवार्य सेवानिवृत्ति के लिए तय किये…

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अल्मोड़ा। माध्यमिक शिक्षा में स्नातक वेतनक्रम में कार्यरत 50 से अधिक उम्र के एलटी अध्यापकों के लिए सरकार द्वारा अनिवार्य सेवानिवृत्ति के लिए तय किये गए फॉर्मूले का प्रदेश उपाध्यक्ष उत्तरांचल पर्वतीय कर्मचारी शिक्षक संगठन उत्तराखंड, धीरेंद्र कुमार पाठक ने नाराजगी जताई है।
पाठक ने कहा कि सरकार द्वारा जबरन कार्मिकों व शिक्षकों को अनिवार्य सेवानिवृत्ति करने की मंशा बनाई गई है और मनमाने मानक तय किए गए हैं। गंभीर बीमार होना किसी भी मनुष्य के लिए नई बात नहीं है। उन्होंने कहा कि विद्यालयों में उपस्थिति 100 फीसदी नहीं होना तथा अनुशासन के बिंदु को भी इसमें शामिल किया गया है।
पाठक ने कहा कि परीक्षाफल को भी सेवानिवृत्ति का आधार बनाया जाना समझ से परे है विज्ञान वर्ग के विषयों में अध्यापकों की पर्याप्त नियुक्ति नहीं होना और कक्षा 6 से 8 तक पास करने की नीति ने ही कहर ढाया है और दोष अध्यापकों व कार्मिकों को देना उचित नहीं है। कहा कि फॉर्मूले में अनुशासन व्यवस्था का भी हवाला दिया गया है लेकिन सभी विद्यालयों व कार्यलय में पूर्ण कालिक अधिकारी कार्यरत नहीं हैं। सौ प्रतिशत परिणाम के लिए सौ प्रतिशत पद भी भरे जाने चाहिए। उन्होंने कहा कि संस्था व कार्यालय में 50-60 प्रतिशत पद ही भरे गए हैं कहीं 40 प्रतिशत और शेष पद रिक्त हैं ऐसी स्थिति में कोई अवकाश पर गया तो स्थिति विस्फोटक हो जाती है और दो के जाने पर संस्था ही दम तोड़ती नजर आती है इस पर सरकारों व विभिन्न विभागों द्वारा गंभीरतापूर्वक विचार किया जाना होगा।
पाठक ने कहा कि सरकार शिक्षकों को दोष देने से अच्छा बुनियादी सुविधाओं व ढांचे को मजबूत कर पहल करे। ताकि स्कूलों में पढ़ाई का माहौल बन सके। सरकार व विभाग द्वारा उक्त हालात को ध्यान में नहीं रखकर जबरन सेवानिवृत्त करने की कोशिश की गई तो निश्चित रूप से विरोध करने की चेतावनी दी है।