यह है अल्मोड़ा का दशहरा महोत्सव,एक बार देखोगे तो मुरीद हो जाओगे,पढ़े पूरी खबर

यह है अल्मोड़ा का दशहरा महोत्सव,एक बार देखोगे तो मुरीद हो जाओगे,पढ़े पूरी खबर

collage dashara mahotsav ki dhoom
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putla nirman

उत्तरा न्यूज अल्मोड़ा। अल्मोड़ा का दशहरा महोत्सव पूरे विश्व में अपनी पहचान रखता है। यदि आपने एक बार भी अल्मोड़ा का दशहरा देख लिया तो निश्चित ही मन बार-बार यहाँ आने के लिए प्रयत्न करेगा । यहां रावण परिवार के बनाए जाने वाले कलात्मक पुतले ही इसकी पहचान है। कभी एक पुतले से शुरू हुआ यह सफल अब 27 पुतलों तक पहुंच गया है। साल दर साल इसकी भव्यता और कलात्मकता बढ़ती जाती है।
दशहरा समारोहों में देशभर में बुराई के प्रतीक राक्षस परिवारों के पुतलों का दहन किया जाता है । लेकिन कुमाऊँ के सांस्कृतिक केन्द्र तथा सांस्कृतिक चेतना के उद्गमस्थल अल्मोड़ा में मनाये जाने वाला दशहरा महोत्सव की अलग धूम है। दशहरे के दिन रंग-बिरंगे पुतलों के सम्मुख खड़ा दर्शक अपने को वर्तमान से कहीं दूर अतीत में घटनाचक्र के नजदीक पाता है ।
यह भी महत्वपूर्ण है कि अल्मोड़ा का दशहरा महोत्सव भी साम्प्रदायिक सौहार्द की ही एक अनुभूति है । यहा दो दर्जन से अधिक पुतलों के निर्माण में शौकिया कलाकारों की कल्पना और सृजनशीलता ने इन पुतलों को प्रतीक भर ही नहीं रहने दिया है। य​हां रामकथा के खलनायकों को जीवन्त रुप में इस प्रकार से गढ़ दिया जाता है कि थोड़ी सी विषयवस्तु के आधार पर तैयार भावभंगिमा और अलंकरण से सुसज्जित पुतला अपनी पात्रगत विशेषता के अनुसार मूक सम्प्रेषण दे सके । अल्मोड़ा में अन्य स्थानों की अपेक्षा यहाँ के पुतले कलात्मकता और भव्यता के साथ उन कलाकारों के द्वारा निर्मित होते हैं जो किसी भी तरह से पेशेवर नहीं है । यह कलाकार हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई अथवा किसी भी धर्म अथवा सम्प्रदाय के हैं। इसमें वयोवृद्ध संस्कृतिक संवाहक भी है तो नौकरीपेशा और प्रवासी भी है। वहीं छोटे छोटे बच्चे भी अपने ओर से पुतलों को सजाने में कोइ्र कोर कसर नहीं छोड़ते हैं।
दशहरे में पुतला निर्माण की कला को प्रदर्शित करते हैं तो लोग आश्चर्य से अंगुली दबा जाते हैं । जैसा शरीर सौष्ठव, रुप विन्यास, कलासज्जा, शारीरिक मुद्रायें इन पुतलों में प्रदर्शित होती हैं, अन्य जगहों पर दुर्लभ हैं । दशहरे के दिन इन पुतलों का जुलूस भी निकलता है । 
अल्मोड़ा में दशहरा महोत्सव की तैयारी एक माह पहले से ही हो जाती है । मोहल्ले-मोहल्ले में रावण परिवार के पुतलों के निर्माण के लिए युवा सक्रिय हो जाते हैं । आब तो स्थान-स्थान पर पुतला निर्माण कमेटियाँ बन गयी हैं । पुतले बाँस की खपच्चियों से तैयार नहीं किये जाते । यहाँ ऐंगिल अचरन के फ्रेम पर पुतलों का निर्माण होता है । पुतलों में पराल भरकर उन्हें बोरे से सिलकर तथा उस पर कपड़े से मनमाफिक आकृति दी जाती है । चेहरा प्लास्टर आफ पेरिस का भी बनाया जाता है । 
इन पुतलों की नयनाभिराम छवि, आँख, नाक तथा विशिष्ट अवयवों को अनुपात देने में यहाँ के शिल्पी अपनी समस्त कला झोंक देते हैं । इन शिल्पियों का हस्तलाघव, कल्पनाशीलता, कौशल देखते ही बनता है । पूरा धड़ एक साथ बनाया जाता है, केवल चेहरा अलग से तैयार किया जाता है । प्रत्येक पुतले में उसकी भाव भंगिमा और मुद्राओं को सूक्ष्मतम रुप में प्रस्फुटित किया जाता है । इन सबके बाद शुरु होता है पुतले का अलंकरण । अल्मूनियम की पन्नियों, चमकदार कागज से किरीट, कुँडल, माला, कवच, बाजूबन्ध तथा विभिन्न शस्त्र बनाये जाते हैं ।
दशहरे के दिन दोपहर से यह पुतले अपने निर्माण स्थल से निकलते हैं । तब इनकी सज्जा देखते ही बनती है। पुतलों की यात्रा लाला बाजार से एक जुलूस के रुप में प्रारंभ होती है। इन पुतलों में रावण, मेघनाद, कुम्भकर्ण, ताड़िका, सुबाहु, त्रिशरा,अक्षयकुमार,मकराक्ष,खरदूषण,नौरा आदि के पुतले शोख रंगों से संवारे जाने से अनोखी आभा लिए हुए होते हैं । इनके साथ-साथ पुतला निर्माण समितियों के लोग भी चलते हैं । जूलुस को क्योंकि अपने गन्तव्य पर पहुँचते-पहुँचते काफी रात हो जाती है इसलिए प्रकाश की भी समुचित व्यवस्था की जाती है ।
इस उत्सव की एक विशेषता यह भी है कि हर मुहल्ले के लोग जूलूस के रुप में अपने-अपने पुतले लेकर आते हैं, इसलिए जितनी सक्रिय भागीदारी पूरे नगरवासियों की इस उत्सव में होती है अन्य किसी भी उत्सव में शायद ही कहीं होती हो। पहले पुतले शहर में जूलूस के रुप में नहीं आते थे । एक दशक पूर्व अख्तर भारती जैसे कलाकारों ने मेघनाद के पुतले से इस उत्सव को जो दिशा दी उसी का परिणाम आज बनने वाले एक दर्जन से ज्यादा पुतलों का जूलूस है । मेघनाद के पुतले को आज भी लोग उसी उत्साह के साथ मनाते हैं। अधिवक्ता वैभव पांडे ने बताया कि समाज के सभी वर्गों के लोग पुतला निर्माण में पहले की तरह सहयोग देते रहे हैं। शुरू में पहले केवल लाला बाजार में लंकापति रावण का पुतला बनाया जाता था समय बीतते ही इनकी संख्या बढ़ती जा रही है, दशहरा महोत्सव समिति के संयोजक दर्शन रावत ने बताया कि कई उतार चढ़ाव के बावजूद यह कला लगातार निखरती रही है। इस बार रावण परिवार के 27 पुतले जुलूस में शामिल होंगे। इस बार जिला प्रशासन भी महिरावण का पुतला बनाया जा रहा है। इसकी थीम बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओं अभियान से जोड़ा गया है। पुतला बनाने के शौकीन बाजार के हिमांशु गुप्ता ने बताया कि हर वर्ष वह पुतला बनाने के लिए आते हैं। वह अपने सहयोगियों के साथ अक्षय कुमार का पुतला बनाते हैं इस बार भी वह दशहरे के लिए छुट्टियां लेकर अल्मोड़ा आये हैं और पुतले के लिए शानदार ज्वैलरी का निर्माण किया गया है। इधर अल्मोड़ा में मंगलवार आठ अक्टूबर को दशहरा महोत्सव का आयोजन किया गया।

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http://uttranews.com/2019/10/06/dashhara-mahotsav-me-prashashan-ne-banaya-putla/

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