उत्तराखंड का घ्यू त्यार, बेडूं, गाबा और घी में तरबतर पकवान खाने की बहार

डेस्क-: घ्यू त्यार (घी-त्यार) उत्तराखंड का एक लोक उत्सव है। यह त्यौहार भी ऋतु आधारित त्यौहार है। हरेला जहां बीजों को बोने और वर्षा ऋतु…

घ्यू त्यार
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डेस्क-: घ्यू त्यार (घी-त्यार) उत्तराखंड का एक लोक उत्सव है। यह त्यौहार भी ऋतु आधारित त्यौहार है।
हरेला जहां बीजों को बोने और वर्षा ऋतु के आगमन का प्रतीक त्यौहार है, वहीं घ्यू त्यार (घी-त्यार) अंकुरित हो चुकी फसलों में बालियों के लग जाने पर मनाया जाने वाला त्यौहार है।भाद्रपद (भादो) महीने की संक्रांति को उत्तराखंड में ओल्गी, ओगी या घी संक्रांति के रूप में मनाई जाती है।


इस बार घ्यू त्यार (घी-त्यार) 16 अगस्त को मनाया जा रहा है। यह कृषि और पशुपालन से जुड़ा हुआ एक पहाड़ी लोक पर्व है।

Harela -ऋतु परिवर्तन का त्यौहार हरेला


जब बरसात के मौसम में उगाई जाने वाली फसलों में बालियाँ आने लगती हैं, किसान अच्छी फसलों की कामना करते हुए ख़ुशी मनाते हैं। कुछ फल और फसलें तैयार हो जाती हैं तब बालियों को घर के मुख्य दरवाज़े के ऊपर गोबर से चिपकाया जाता है। बड़ा बात यह है कि बरसात में पशुओं के दूध में बढ़ोतरी होने से दही -मक्खन -घी भी प्रचुर मात्रा में मिलता है। अतः घ्यू त्यार (घी-त्यार) के
दिन घी का प्रयोग अवश्य ही किया जाता है। कहा जाता है जो इस दिन घी नहीं खायेगा उसे अगले जन्म में गनेल यानि घोंघे (snail) के रूप में जन्म लेना होगा।

उत्तराखण्ड का लोकपर्व है ” घ्यू त्यार


परंपरा के अनुसार छोटे बच्चों के सर पर घी लगाया जाता है। यह घी के प्रयोग से शारीरिक और मानसिक शक्ति में वृद्धि का संकेत देता है।


इस दिन सभी लोग अपने मित्रों व सम्बन्धी जनों को ओल्गा (पापड, तुरयी, मूली, सकियामिर्च, ककड़ी, भुट्टा आदि) भेट करते हैं। कहा जाता है कि घी से तरबतर पकवान खाने का शौक आज ही पूरा हो सकता है, कचौड़ी यानी मास का बेड़ू, गाबे यानी पिलालू पापड़ की चटपटी सब्जी आज के भोजन के मुख्य वंयंजन हैं| घरों में लगाए गए दाड़िम के दानों की खट्टी मीठी चटनी भी त़्यौहार को और उत्साहजनक बना देती है| लोगो अपनी विवाहित बेटियों को भी आज घर की ताजा सब्जियां भेंट करते हैं|


यही नहीं समाज के अन्य वर्ग शिल्पी ,दस्तकार, लोहार, बढई आदि भी अपने हस्त कौशल से निर्मित वस्तुएँ भेंट में देते थे, और धन धान्य के रूप में ईनाम पाते थे। अर्थात जो खेती और पशुपालन नहीं करते थे वे भी इस पर्व से जुड़े रहते थे। क्योंकि इन दोनों व्यवसायों में प्रयोग होनें वाले उपकरण यही वर्ग बनाते थे। गृह निर्माण हो या हल , कुदाली, दातुली जैसे उपकरण या बर्तन, बिणुली जैसे छोटे वाद्य यंत्र हों। इस भेंट देने की प्रथा को ओल्गी कहा जाता है।


मसलन सारी चिंताए छोड़ घी में तरबतर पकवान खाने का त्यौहार है घी त्यार यानी घ्यू त्यार या ओगी त्यार आपको ऋतु पर्व के प्रतीक घ्यू त्यार (घी-त्यार) की ढ़ेर सारी बधाइयां|
(प्रचलित जनश्रुतियों से संकलित)

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