रिफाइंड तेल का उपयोग लगभग हर घर में किया जाता है। इसे बीजों से निकालकर विभिन्न रासायनिक प्रक्रियाओं से शुद्ध किया जाता है, ताकि यह अधिक समय तक टिक सके और साफ-सुथरा दिखे। लेकिन क्या यह प्रक्रिया इसे जहरीला बना देती है? आइए इसे वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समझते हैं।
रिफाइंड तेल बनाने की प्रक्रिया में तेल को उच्च तापमान पर गर्म किया जाता है और उसमें कुछ रसायनों का उपयोग किया जाता है ताकि वह गंधहीन, स्वादहीन और पारदर्शी बन सके। इसमें निम्नलिखित चरण शामिल होते हैं:
- डी-गमिंग – इस प्रक्रिया में तेल से गोंद और अशुद्धियाँ हटाई जाती हैं।
- न्यूट्रलाइजेशन – तेल में मौजूद फ्री फैटी एसिड्स को हटाने के लिए कास्टिक सोडा जैसे रसायनों का उपयोग किया जाता है।
- ब्लीचिंग – तेल के रंग को हल्का करने के लिए ब्लीचिंग क्ले का उपयोग किया जाता है।
- डीओडराइजेशन – तेल की गंध को हटाने के लिए इसे बहुत अधिक तापमान (200-250°C) पर गर्म किया जाता है।
रिफाइंड तेल का अत्यधिक सेवन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है। अत्यधिक प्रोसेसिंग के कारण इसमें मौजूद प्राकृतिक पोषक तत्व कम हो सकते हैं। कुछ अध्ययनों के अनुसार, बार-बार गर्म किए गए रिफाइंड तेल का सेवन करने से शरीर में हानिकारक ट्रांस फैट की मात्रा बढ़ सकती है, जिससे हृदय रोग, कोलेस्ट्रॉल बढ़ना, मोटापा, डायबिटीज और कैंसर जैसी समस्याएँ हो सकती हैं।
हालाँकि, यह कहना कि रिफाइंड तेल पूरी तरह से “जहर” है, सही नहीं होगा। सभी रिफाइंड तेल खतरनाक नहीं होते। कई ब्रांड सुरक्षित प्रक्रिया अपनाते हैं, जिससे हानिकारक तत्वों की मात्रा नियंत्रित रहती है। लेकिन अत्यधिक प्रोसेसिंग वाले तेल से बचना बेहतर होता है।
यदि आप स्वास्थ्य के प्रति अधिक सचेत हैं, तो निम्नलिखित विकल्पों पर विचार कर सकते हैं:
- कोल्ड-प्रेस्ड तेल (लकड़ी घानी तेल) – यह पारंपरिक तरीके से निकाला जाता है और इसमें प्राकृतिक पोषक तत्व सुरक्षित रहते हैं।
- घी और मक्खन – मॉडरेशन में लिया गया देसी घी स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है।
- मूंगफली, सरसों, नारियल और जैतून का तेल – ये कम प्रोसेस किए गए तेल अच्छे विकल्प हैं।