एक साल के आर्यन की जिंदगी नहीं बचा पाया बालिग उत्तराखंड, 19 साल के उत्तराखंड में न्यूरो सर्जन नहीं होने से हल्द्वानी तक नहीं मिल पाया उपचार,उठे सवाल

धारचूला सहयोगी- एक साल के आर्यन ने आपनी मां की गोद में सोते हुए इस दुनिया से आज अलविदा कह दिया, कुमांऊ के छः जिलों…

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धारचूला सहयोगी- एक साल के आर्यन ने आपनी मां की गोद में सोते हुए इस दुनिया से आज अलविदा कह दिया, कुमांऊ के छः जिलों के लिए बने एकमात्र सुशीला तिवारी मेड़िकल कालेज में न्यूरो सर्जन के नहीं होने से बच्चे के इलाज की गाड़ी आगे नहीं बढ़ पाई, इस मासूम की मौत ने 19 साल के उत्तराखंड पर अनगिनत सवाल खड़े कर दिए है| इस मौत का कौन जिम्मेदार है, इस पर अंतिम फैसला व कुछ दंड की आशा भी क्या इस गरीब दुःखी परिवार को करनी चाहिए कि नहीं इस पर भी फैसला सुनाया जाना चाहिए| दर्दनाक कहानी इस बार सीमांत से सामने आई है, धारचूला तहसील के ग्राम हाट निवासी रुकम सिंह बोरा का एक साल का बेटा आर्यन बीमार हो गया, बुखार के साथ बेहोसी छाने लगी , डरा सहमा रुकम अपने जिगर के लाल को जिला अस्पताल ले आया| चिकित्सकों ने बताया कि बच्चे के दीमाग में पानी भर गया है| इसके इनफैक्सन से बच्चे की जान खतरे में आ गई है| बच्चे को बाहर इलाज के लिए ले जाना पडे़गा, यह सुनकर इस गरीब की जमीन खिसक गई| तभी दो नर्स नीलम पांडे, रजनी चंद इसके लिए भगवान बनकर आये, दोनो ने अपनी जेब से धन देकर इनको 1 जून को सुशील तिवारी मेड़िकल कालेज भेजा | मेड़िकल कालेल ने न्यूरो सर्जन नहीं होने का हवाला देकर बच्चे को भर्ती तक नहीं किया| इन नर्सो ने हल्दानी में भिक्षा मांगने वाले बच्चों के लिए काम करने वाली गुंजन बिष्ट अरोरा को बताया, गुंजन की सूचना पर सामाजिक कार्यकर्ता गुरविन्दर सिंह चड्डा ने इस बालक को हल्दानी के एक निजि अस्पताल में भर्ती करवाया, डाक्टर की राय पर इस बच्चे को दिल्ली भेजने के लिए गुरविन्दर सिंह चड्डा ने एम्बुलेंस,रुपये का इंतजाम कर आर्यन को रवाना किया| सुशीला तिवारी मेड़िकल कालेज की गेट पर पहले ही डाक्टर साहब के नहीं होने की कहानी सुन धोखा खा चूके रुकम ने दिल्ली की जगह अपने घर वापस जाना उचित समझा, जबकि दिल्ली में चड्डा ने रहने से लेकर इलाज की व्यवस्था की थी| जब इस बात की सूचना भाजपा नेता जगत मर्तोलिया को दी गई कि रुकम अपने जिद से घर चार जून को लौट आया है तो हाट निवासी नर्मदा रावल व नवीन थलाल को इस बच्चे को फिर अस्पताल भेजने की जिम्मेदादी दी, लाख कोशिश के बाद भी रुकम घर से बाहर जाने को राजी नहीं हुए| सरकारी हैल्थ सिस्टम से मिले अविश्वास से रुकम टूट चूका था| इस कारण एक बच्चे की किलकारी हमेशा हमेशा के लिए बंद हो गई. किसे इसका दोष दे, कौन जिम्मेदार है| भाजपा नेता जगत मर्तोलिया ने कहा कि 19 साल का उत्तराखंड इसके लिए जिम्मेदार है. एक सरकार एक पार्टी को क्या दोष दे| उन्होंने कहा कि गरीब और उसके बच्चे को बिना दवा के मरना उसकी नियति बन गई है| बिना एक बड़े सामाजिक आंदोलन के राज्य की दिशा नहीं बदली जा सकती है|