केदारनाथ यात्रा की 16 किमी का दुर्गम पथ, श्रद्धालुओं की आस्था और धैर्य की परीक्षा

केदारनाथ धाम तक पहुंचने का 16 किलोमीटर लंबा गौरीकुंड-केदारनाथ पैदल मार्ग श्रद्धालुओं की आस्था के साथ-साथ उनके धैर्य की भी परीक्षा लेता है। कैंचीदार मोड़,…

IMG 20240513 WA0003

केदारनाथ धाम तक पहुंचने का 16 किलोमीटर लंबा गौरीकुंड-केदारनाथ पैदल मार्ग श्रद्धालुओं की आस्था के साथ-साथ उनके धैर्य की भी परीक्षा लेता है। कैंचीदार मोड़, तीखी चढ़ाई, भूस्खलन और हिमखंड जोन जैसे कई खतरे इस रास्ते को और भी दुर्गम बना देते हैं।

गौरतलब हो, 11750 फीट की ऊंचाई पर स्थित पंचकेदार में से एक केदारनाथ धाम में भगवान आशुतोष के द्वादश ज्योतिर्लिंगों के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं का तांता लगा हुआ है। कपाट खुलने के बाद से यहां पैदल मार्ग पर भक्तों का सैलाब उमड़ रहा है, लेकिन यह मार्ग सुरक्षा की दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील है।

कैंचीदार मोड़ और तीखी चढ़ाई श्रद्धालुओं को सांस लेने में तकलीफ और बेचैनी का सामना करना पड़ता है। भूस्खलन जोन चीरबासा जैसे क्षेत्रों में भूस्खलन का खतरा लगातार बना रहता है।हिमखंड जोन टीएफटी चट्टी, हथनी गदेरा, कुबेर गदेरा, भैरव गदेरा जैसे हिमखंड जोन भी खतरे का सबब हैं। घोड़ा-खच्चरों का संचालन पैदल मार्ग पर जानवरों की लीद और मूत्र से कीचड़ रहने के कारण चलना मुश्किल होता है।

बता दें, 2013 की आपदा में रामबाड़ा से केदारनाथ तक का रास्ता पूरी तरह से ध्वस्त हो गया था। वर्तमान में रामबाड़ा से छानी कैंप तक का 6 किमी का खंड सबसे दुर्गम है। यहाँ तीखी चढ़ाई और ऑक्सीजन की कमी श्रद्धालुओं के लिए बड़ी चुनौती पेश करती है।

रुद्रा प्वाइंट से एमआई-26 हेलिपैड तक का रास्ता भले ही सीधा है, लेकिन यह भू-कटाव और भूस्खलन के खतरे से घिरा हुआ है। केदारनाथ आपदा के एक दशक बाद भी इस मार्ग की सुरक्षा के लिए कोई ठोस योजना नहीं बनाई गई है, जो चिंता का विषय है।