लापरवाही : उपचार के अभाव में तोड़ा दम दो दिन तक तड़पता रहा था गौ वंश

नकुल पंत लोहाघाट। काली कुमाऊं में पिछले रविवार दोपहर एक गौ वंश मुख्य पंचेश्वर सड़क मार्ग स्थित हरखेड़ा के पास मड़ पसौली में बेसुध पड़ी…

Public hearing

नकुल पंत

लोहाघाट। काली कुमाऊं में पिछले रविवार दोपहर एक गौ वंश मुख्य पंचेश्वर सड़क मार्ग स्थित हरखेड़ा के पास मड़ पसौली में बेसुध पड़ी मिली थी। इस गाय के समुचित इलाज की सुविधा तो दूर देखरेख करने वाले कर्मचारी तक नजर नहीं आए। पूरे दो दिन तक गाय की हालत गंभीर बनी रही। पास स्थित गौ सेवा सदन से पूछे जाने पर गैर जिम्मेदाराना जवाब मिलता है। बावजूद इसके दो दिन तड़पती गाय ने सोमवार को आखिरकार दम तोड़ दिया।

एक ओर उत्तराखंड राज्य पूरे देश में गौ वंश की सुरक्षा के लिए गौ सेवा आयोग की स्थापना करने वाला पहला राज्य बना। दूसरी ओर पूरे देश में तथाकथित गौ भक्त महज दिखावे के गौ भक्त बने हुए हैं। सड़क की तंग गलियों में ये बेआसरा गौ वंश भटकती भी देखी जा रही हैं। लेकिन इनकी सुध लेने वाले वो गौ सेवक कहीं नहीं नजर आ रहे।

जब बेसुध पड़ी इस गाय के उचित स्वास्थ्य सुविधा हेतु गौ सदन के अध्यक्ष से बात करनी चाही तो उनका फोन स्विच ऑफ मिला। वहीं गौशाला के कोषाध्यक्ष त्रिभुवन सिंह धौनी का कहना था कि उन्हें केवल ट्रस्ट के कोष की ही जानकारी है। गौशाला की देखरेख के लिए कर्मचारी मौजूद हैं तथा गौशाला की सारी व्यवस्थाएं अध्यक्ष ही देखते हैं।अगले दिन गौशाला अध्यक्ष से दोबारा संपर्क करने पर उन्होंने बताया कि उक्त गाय को साथ ही चर रहे जानवरों में से किसी एक ने धक्का मार कर गिरा दिया गया होगा। इससे गाय के पिछले शरीर में आंतरिक चोटें आ गयी हैं। गाय को उचित स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित स्थान में रख कर डाक्टर को सूचना देने की बात कही गई। इस बारे में पूछे जाने पर पशु चिकित्सक लोहाघाट डी के चंद ने बताया कि उन्हें इस बात की कोई जानकारी नहीं दी गई है।

गौ सेवा के लिए गौशाला भी है यहां


विकासखंड लोहाघाट से 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित माँ कामधेनु वात्सल्य गौ शाला की स्थापना गौशाला अध्यक्ष शंकर दत्त पांडेय ने लगभग चार वर्ष पूर्व की गई थी | जिसका मुख्य उदेश्य लावारिस गायों, गौ तश्करी की रोकथाम,असहाय गायों को सरंक्षण कर उन्हें बचाना है| लेकिन इस गाय का जख्म चीख चीख कर इन गौ सेवकों को नहीं दिखाई देता।

रामचरितमानस में गाय की गाथा
गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस में गाय की गाथा का वर्णन करते हुए कहा है कि :
भूकंप कहे गाइ की गाथा।कांपे धरा त्रास अति जाता।
जा दिन धरा धेनु ना होई। रसा रसातल ता छन खोई।
भूकंप गाय की गाथा ही गा रहा है। जब गौ माता को बहुत कष्ट होता है तभी पृथ्वी कांपती है अर्थात भूकंप आता है। जिन दिन पृथ्वी पर गाय नही होगी।उसी समय पृथ्वी रसातल अर्थात पाताल लोक को चली जाएगी।

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