क्या आपको पता है कि आखिर वक्त के साथ क्यों बदल गए कांग्रेस और भाजपा के चुनाव चिन्ह! रोमांचक है इसके पीछे की कहानी

चुनाव चिन्ह का हमेशा से महत्व रहा है फिर चाहे पार्टी का चिन्ह हो या फिर मैदान में निर्दलीय अपनी किस्मत आजमा रहे हो। चुनाव…

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चुनाव चिन्ह का हमेशा से महत्व रहा है फिर चाहे पार्टी का चिन्ह हो या फिर मैदान में निर्दलीय अपनी किस्मत आजमा रहे हो। चुनाव चिन्ह से ही उन्हें अपनी पहचान मिलती है। इन निशानों के बल पर हार जीत भी तय होती है। आजादी के बाद कई पार्टियां बनी उन्हें कई सारे चुनाव चिन्ह भी मिले। समय बीतने के साथ पार्टियों का विभाजन हुआ तो चुनाव चिन्ह भी बदलते चले गए।

आजादी के बाद 1992 में हुए पहले चुनाव में कांग्रेस पार्टी का चुनाव चिन्ह “दो बैलों की जोड़ी” था तो भारतीय जनसंघ का ‘दीपक’ और प्रजा सोशलिस्ट पार्टी का ‘झोपड़ी’। हालांकि इसके बाद वक्त बदला और कांग्रेस का चुनाव चिन्ह पंजा हो गया तो जनसंघ से भाजपा बनने के बाद चुनाव चिन्ह कमल हो गया। कांग्रेस ने पहला चुनाव चिन्ह इसी चिन्ह पर पंडित जवाहरलाल नेहरू की अगुवाई में लड़ा था और अपनी सरकार बनाई थी। सन 1970-71 में कांग्रेस का विभाजन हुआ। पार्टी से अलग हुए मोरारजी देसाई, चंद्रभानु गुप्ता और संगठन कांग्रेस बनाई विभाजन होते ही चुनाव चिन्ह दो बैलों की जोड़ी थी ये विवादित हो गई और चुनाव आयोग ने उसे सीज कर दिया।

बाद में इंदिरा गांधी वाली कांग्रेस की सरकार आई और उन्हें चुनाव चिन्ह मिला “गाय और बछड़ा” जबकि संगठन कांग्रेस को “चरखा” चुनाव चिन्ह मिला। जून 1975 में देश में आपातकालीन स्थिति हो गई। आपातकाल में जेल में गए वरिष्ठ नेता के श्रीवास्तव ने कहा कि उस दौरान इंदिरा गांधी के पुत्र संजय गांधी भी राजनीति में एक्टिव हो चुके थे। आपातकाल समाप्त होने के बाद साल 1977 में लोकसभा के चुनाव चिन्ह को विपक्षी पार्टियों ने मुद्दा बना लिया और भाषणों में इंदिरा गांधी को गाय और संजय गांधी को बछड़ा कहने लगे।

वर्ष 1977 में चुनाव में ही “दीपक” चिन्ह वाले राज्य संघ “झोपड़ी” चुनाव निशान वाली प्रजा सोशलिस्ट पार्टी और चौधरी चरण सिंह के नेतृत्व वाले भारतीय क्रांति दल का विलय हुआ और जनता पार्टी बनी, जिसे चुनाव चिह्न मिला ‘कंधे पर हल लिए हुए किसान’। साल 1979 में कांग्रेस में एक और विभाजन हुआ और उसे चुनाव चिन्ह ‘हाथ का पंजा’ मिला। इसके बाद विपक्षी दलों ने कांग्रेस के चुनाव चिन्ह को खूनी पंजा कहना शुरू कर दिया। इसी बीच भारतीय जनता पार्टी भी बिखर गई और पूर्ववर्ती राज संघ के नेताओं ने 1980 में भारतीय जनता पार्टी का गठन कर लिया और उन्हें चुनाव चिन्ह मिला “कमल का फूल” चौधरी चरण सिंह की अगुवाई वाली लोक दल को “खेत जोतता हुआ किसान’ चुनाव चिह्न मिला।

साल 1987- 88 में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता विश्वनाथ प्रताप सिंह ने तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी पर बोफोर्स टैंक खरीदने में दलाली का आरोप लगाया और पार्टी छोड़ दी और लोकसभा के सदस्यता से इस्तीफा भी दे दिया। जून 1988 में इलाहाबाद के तत्कालीन सांसद एवं अभिनेता अमिताभ बच्चन से इस्तीफा देने से खाली हुई सीट पर उप चुनाव हुआ। इसमें विश्वनाथ प्रताप सिंह निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतरे। उन्हें गैर कांग्रेसी सभी दलों का समर्थन मिला।

इस चुनाव में उन्हें ‘अनाज ओसाता हुआ किसान’ चिह्न मिला। वीपी को मिला चुनाव चिह्न हर मतदाता को पता चले, इसके लिए एकजुट हुए नेताओं ने सौ व्यक्तियों की टीम बनाई और प्रमुख चौराहों, बाजार, कस्बों में जगह-जगह सूप लेकर अनाज ओसाया। इसका असर हुआ और मतदाताओं ने बीपी को जीत दिलाई।
विश्वनाथ प्रताप सिंह ने इलाहाबाद से चुनाव जीतने के बाद जनता दल के नाम से एक पार्टी बनाई। इस पार्टी को चुनाव चिन्ह मिला ‘चक्र’। वर्ष 1988 के बाद हुए लोकसभा चुनाव में जनता दल इसी चिन्ह के साथ लड़ी और जीत कर अपनी सरकार बनाएं लेकिन एक वर्ष बाद ही जनता दल का विभाजन हो गया।

उसके बाद चंद्रशेखर के नेतृत्व में समाजवादी जनता पार्टी का गठन हुआ, जिसे ‘कंधे पर हल’ लिए किसान का चुनाव चिन्ह मिला। वर्ष 1992 में मुलायम सिंह यादव समाजवादी जनता पार्टी से अलग हो गए और उसी वर्ष  अक्टूबर में उन्होंने समाजवादी पार्टी बनाई जिसे उन्होंने साइकिल का चुनाव चिह्न दिया। इसके पहले 1985 में बहुजन समाजवादी पार्टी का गठन हुआ जिसे ‘हाथी’ का चुनाव चिन्ह मिला।