चित्रकार प्रकाश की पहल लाई रंग,जीवास ने दिखाई बेरोजगारों को राह

आम तौर ​पर किसी भी युवा का सपना होता है कि किसी तरह से नौकरी लग जाएं और इसके बाद जिंदगी आराम से कटने लगेगी।…

The initiative of painter and teacher Prakash paid off, Jeevas showed the way to the unemployed.

आम तौर ​पर किसी भी युवा का सपना होता है कि किसी तरह से नौकरी लग जाएं और इसके बाद जिंदगी आराम से कटने लगेगी। वही कुछ लोग ऐसे भी है जो नौकरी लगने के बाद कईयों के लिए प्रेरणास्रोत बनकर उभरे है। उनमें से एक है प्रकाश पपनै, जो सरकारी नौकरी लगने के बाद भी युवाओं को कुछ नया करने में उनकी मदद में जुटे है।


अल्मोड़ा से अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद प्रकाश का चयन इंटर कॉलेज में हो गया। नौकरी लगने के बाद भी प्रकाश ने कुछ नया करने की ठानी और शुरू हुआ जीवास को स्टेबलिश करने का सफर। आज प्रकाश की दिखाई राह से जुड़कर जीवास के माध्यम से चार लोग प्रत्यक्ष रूप से और दर्जनों लोग अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार पा रहे है।


अब बात करते है जीवास की। जहां दुनिया रासायनिक खादों से होने वाले प्रभावों से त्रस्त है,वही “जीवास”इसका विकल्प बनकर उभरा है। अल्मोड़ा जिले के रानीखेत तहसील के तिमिला गांव में जीवास वर्मी कंपोस्ट यूनिट पहाड़ में रहने वाली कुछ युवाओं की आधुनिक सोच को दर्शाता है। यहां युवा पारंपरिक तौर तरीके से बनाई जा रही खाद को आधुनिक और वैज्ञानिक तरीके से तैयार कर रहे है। इसमें काफी प्रयोग भी देखने को मिलते हैं इसमें विशेष प्रकार के कैचुओं का इस्तेमाल किया जाता है, और विभिन्न प्रकार की तकनीक से यह खाद तैयार की जाती है।

जीवास में में ना सिर्फ वर्मी कंपोस्ट ही नहीं बल्कि इसके साथ में “गोट मेन्योर “और “बांज ओक कंपोस्ट ” भी तैयार होती है। यह खाद किचन गार्डन के लिए काफी फायदेमंद है और साथ ही साथ फूलों के लिए भी काफी फायदेमंद है,क्योंकि इसमें कोई नुकसानदेह केमिकल नही है।
चित्रकार प्रकाश पपनै की शुरू की गई यह पहल अब एक वृहद रूप लेने को तैयार है। इस मुहिम के साथ आज काफी लोग जुड़े हुए हैं कई लोगों के लिए यह रोजगार का साधन बन गया है। खासकर गौपालन करने वाली महिलाओं और किसानों के लिए जीवास एक अतिरिक्त आय का साधन बनकर उभरा है। आसपास के ग्रामीण गोबर जीवास कंपनी देते है और जीवास इसके लिए लोगों को भुगतान करता है।

इसके बाद शुरू होती है कंपोस्ट बनने की प्रक्रिया। गोबर को प्लांट में 3 महीने तक प्रोसेस किया जाता है, है ठंड के महीनों में यह प्रोसेस चार ​महीने तक चल सकती है।इसके बाद खर्च के हिसाब से उसका रेट तय होता है,आम तौर पर 25 से 65 रूपये किलो तक इसकी कीमत लगती है। इसकी सप्लाई कुमांऊ के पर्वतीय और मैदानी क्षेत्रों में की जा रही और अमेजन के माध्यम से भी लोग इसे खरीद रहे है।

इस यूनिट की क्षमता 2 टन यूनिट हर महीने है। कंपोस्ट बिना किसी कैमिकल के तैयार की जाती है और इसमें फास्फोरस,नाइट्रोजन,जिंक,कॉपर,पौटैशियम,मैग्नीशियम आदि तत्व प्रचुर मात्रा में पाएं जाते है। आर्गेनिक होने से जमीन की उर्वरा शक्ति के फसल के बाद खराब होने का खतरा नही होता है। जीवास एक ऐसे मॉडल के रूप में उभरा है जिसके माध्यम से लोग अपनी आजीविका चला रहे है साथ ही लोगों को स्वावलंबी बनाने में इससे मदद मिल रही है।इसमें विनय, रवि व रेनू कांडपाल समेत अन्य युवा इस कार्य से प्रत्यक्ष रूप से जुड़े हैं, ओर इस मॉड्यूल को सक्षम बनाने में जुटे हैं।