अनेक पौराणिक गाथाओं को समेटे है काली कुमाऊं का माँ पूर्णागिरि शक्तिपीठ

अमित जोशी टनकपुर। चीन, नेपाल और तिब्बत की सीमाओं से घिरे सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण क्षेत्र काली कुमाऊं चंपावत के प्रवेशद्वार टनकपुर से 19 किलोमीटर…

IMG 20190426 WA0004

अमित जोशी टनकपुर। चीन, नेपाल और तिब्बत की सीमाओं से घिरे सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण क्षेत्र काली कुमाऊं चंपावत के प्रवेशद्वार टनकपुर से 19 किलोमीटर दूर स्थित मां पूर्णागिरि शक्तिपीठ मां भगवती की 108 सिद्धपीठों में से एक है। तीन ओर से वनाच्छादित पर्वत शिखरों और प्रकृति की मनोहारी छटा के बीच कल-कल करती सात धाराओं वाली शारदा अविरल बहती है। टनकपुर नगर मां पूर्णागिरि के दरबार में आने वाले यात्रियों का मुख्य पडाव है।

चैत्र की नवरात्र में यहां मां के दर्शन की विशेष महत्ता है। मां पूर्णागिरि का शैल शिखर अनेक पौराणिक गाथाओं का अतीत में समेटे हुए है। पहले पहल यहां चैत्र मास के नवरात्रियों के दौरान ही कुछ समय के लिए मेला लगा करता था। बीते कई दशकों से मां के प्रति श्रद्धालुओं की बढ़ती आस्था के चलते अब यहां वर्ष-भर भक्तों का सैलाब उमड़ता रहता है।

मां पूर्णागिरि मंदिर में भावनाओं की अभिव्यक्ति और शक्ति के प्रति अटूट आस्था का दर्शन होता है। अनेक पौराणिक गाथाओं और शिव पुराण रुद्र संहिता के अनुसार जब सती के आत्मदाह के पश्चात भगवान शंकर तांडव करते हुए यज्ञ कुंड से सती के शरीर को लेकर आकाश मार्ग में विचरण करने लगे। तब विष्णु भगवान ने शिव तांडव को देखकर सती के शरीर के अंग पृथक कर दिए जो आकाश मार्ग से विभिन्न स्थानों में जा गिरे। कथा के अनुसार जहां जहां देवी के अंग गिरे वही स्थान शक्तिपीठ के रूप में प्रसिद्ध हो गए। मां सती का नाभि अंग अन्नपूर्णा शिखर पर गिरा जो पूर्णागिरि के नाम से विख्यात हुआ। देश की चारों दिशाओं में स्थित मल्लिका गिरि, कालिका गिरि, हमला गिरि और पूर्णागिरि में इस पावन स्थल पूर्णागिरि को सर्वोच्च स्थान प्राप्त हुआ। इन्हीं शक्तिपीठों में से एक मां पूर्णागिरी की महिमा यहां गाई जाती है।

माँ पूर्णागिरि का महातम्य
देवी भागवत और स्कंद पुराण तथा चूणामणिज्ञानाणव आदि ग्रंथों में शक्ति मां सरस्वती के 51,71 तथा 108 पीठों के दर्शन सहित इस प्राचीन सिद्धपीठ का भी वर्णन है जहां एक चकोर इस सिद्ध पीठ की तीन बार परिक्रमा कर राज सिंहासन पर बैठा था।

पुराणों के अनुसार महाभारत काल में प्राचीन ब्रह्माकुंडके निकट पांडवों द्वारा देवी भगवती की आराधना तथा बह्मादेव मंडी में सृष्टिकर्ता ब्रह्मा की ओर से आयोजित विशाल यज्ञ में एकत्रित अपार सोने से यहां सोने का पर्वत बन गया। ऐसी मान्यता है कि नवरात्रियों में देवी के दर्शन से व्यक्ति महान पुण्य का भागीदार बनता है।