यह है नीर की पीर, नहीं संभले तो फिर मौका मिले न मिले , पानी की आवाज सुनो कार्यक्रम में आए कई विचार

रामनगर सहयोगी : उत्तराखंड विज्ञानं शिक्षा एवं अनुसन्धान केंद्र एवं पवलगढ़ प्रकृति प्रहरी के तत्वावधान में नौला फाउंडेशन संयुक्त प्रयास से पवलगढ़ में जल की…

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रामनगर सहयोगी : उत्तराखंड विज्ञानं शिक्षा एवं अनुसन्धान केंद्र एवं पवलगढ़ प्रकृति प्रहरी के तत्वावधान में नौला फाउंडेशन संयुक्त प्रयास से पवलगढ़ में जल की महत्ता को देखते हुए `जल संरक्षण´ को अपनी सर्वोच्च प्राथमिकताओं में रखकर जन जागरूकता की कार्यशाला जल चर्चा चौपाल से “पानीकीआवाजसुनो 2030”का आयोजन 13 व 14 अप्रैल को किया गया जिसमे पूरे देश से आये वैज्ञानिकों और पर्यावरणविदों ने अपनी बात रखी I नौला फाउंडेशन के स्वामी वीत तमसो ने बताया कि पर्यावरण संरक्षण से संबंधित सारी चर्चाएं महज लेखों, बातों और सोशल मीडिया तक ही सीमित रह गई हैं।  धरती पर अब 22 फीसदी वन क्षेत्र ही बचा है, जो अपने आप में एक खतरे की घंटी है । पर्यावरण असंतुलन को रोकने के भागीरथी प्रयास होते रहे हैं, किंतु स्थिति जस-की-तस है। विकास जरूरी तो है, पर ध्यान रहे कि प्राकृतिक संकेतों को तिलांजलि देते हुए अंधाधुंध विकास, विनाश के जनन को उत्तरदायी होता है। यूसर्क के निदेशक वैज्ञानिक प्रोफेसर दुर्गेश पंत के अनुसार जैव विविधता के मामले में आदिकाल से धनी रहे भारत जैसे देश के अधिकांश शहर आज प्रदूषण की भारी चपेट में है। पर्यावरणीय संकेतों तथा विकास के सततपोषणीय स्वरूप की अवहेलना कर अनियंत्रित आर्थिक विकास की आंच हिमालय तक आ चुकी है, हिमालय से निकली नदियों का पूरे देश से सीधा सम्बन्ध है, जिनका हरित और श्वेत क्रान्ति में महती भूमिका है। पर्यावरण में चमत्कारिक रूप से विद्यमान तथा जीवन प्रदान करने वाली नदियाँ आज प्रदूषित होकर मानव जीवन के लिये खतरनाक और कुछ हद तक जानलेवा हो गई है। पवलगढ़ प्रहरी के संस्थापक पर्यावरणविद मनोहर मनराल ने बताया कि अभी देश में चुनाव चल रहे है परंतु किसी ने पर्यावरण जैसे सम्वेदनशील मुद्दे को गम्भीरता से नहीं लिया, सदानीरा कोसी, गौला, डाबका नदियों के साथ साथ कई गधेरो जो रामनगर, हल्द्वानी के अलावा पूरे भाबर और तराई क्षेत्र की जीवनरेखा का काम करती आज उसका पानी सूखने की कगार पर हैं यदि एक बार नदियाँ सूखने लगती हैं तो मानव अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा। जिसका परिणाम गर्मियों में भयंकर पानी की कमी का खतरा मंडरा रहा है। हम पानी की आपूर्ति के लिए कहां जाएंगे, वरिस्ठ वैज्ञानिक डा. गिरीश नेगी ने बताया आज धरती का तापमान बढ़ने से जलवायु परिवर्तन की जो स्थितियाँ बनी हैं उनके कारण उत्तराखण्ड जैसे क्षेत्र में नौले-धारे सूख रहे हैं या सूख चुके हैं और इसके लिये हम सब जिम्मेदार हैं पानी की उपलब्धता कम होने के कारण आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक संकट भी सामने आ रहे हैं। समाज में हिंसा बढ़ रही है, समाज बिखर रहा है। पर्यावरणविद किशन भट्ट कहना है की राज्य सरकार और स्थानीय सामाजिक संस्थाओ के साथ साथ स्थानीय जन भागीदारी को भी आगे आकर हिमालय के सूख रहे पारम्परिक जल स्रोत नौले, धारे, गाड़-गधेरो के साथ वहां की जैव विविधता को भी बचाना होगा और अब ऐसे संतुलित कानून बनाने होंगे I यह कार्यशाला पूरी तरह से प्लास्टिक फ्री इको फ्रेंडली वातावरण में आयोजित हुई। नौला फाउंडेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष बिशन सिंह ने बताया कि नौला फाउंडेशन का उत्तराखंड की पारम्परिक जल स्रोत और सांस्कृतिक प्रतीक नौलो धारो को संरक्षित करना ही एकमात्र मिशन हैं I भूमि, जल, वनस्पति और पशुओं जैसी जीवन को सहारा देने वाली बुनियादी व्यवस्थाओं के संरक्षण में उत्तराखंड की महिलाओं ने अहम भूमिका निभाई है और निभा रही हैं। डा भारद्वाज ने बताया परिवार में सिंचित अथवा वर्षा-सिंचित पानी इकट्ठा करने, इस्तेमाल करने और उसके प्रबंधन में उनकी महत्त्वपूर्ण सहभागिता के कारण महिलाएँ जल संसाधनों की कड़ी हैं और उनके पास जल-संसाधनों की गुणवत्ता एवं विश्वसनीयता, सीमा एवं भंडारण के उचित तरीकों समेत पीढ़ियों से मिला ज्ञान है। जलवायु परिवर्तन के कारण 50 प्रतिशत से ज्यादा जल धाराएं सूख चुकी है, और जो बची है उनमें भी सीमित जल ही बचा है । स्थानीय जन भागीदारी में महिलाओं को भी अब आगे आना होगा और आगे आकर हिमालय के सूख रहे पारम्परिक जल स्रोत नौले, धारे, गधेरो गाड़ के साथ वहां की जैव विविधता को भी बचाना होगा और सरकार से ये निवेदन हैं की हिमालय के लिए एक ठोस नीति बनानी होगी और पर्यटकों पर पर्यावरण शुल्क भी लगाने के साथ साथ प्लास्टिक पर पूर्णतः प्रतिबन्ध लगाना होगा तभी थोड़ा बहुत हम अपने बच्चों को साफ़ सुधरा भविष्य दे सकते हैं I इस वर्ष का नौला इंडिया पर्यावरण मित्र अवार्ड मनोहर सिंह मनराल, खेम सिंह कठायत, डॉ. गिरीश नेगी को पर्यावरण सरंक्षण के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिये युसर्क के निदेशक डॉ. दुर्गेश पंत मुख्य अतिथि दारा दिया गया
इस जल चर्चा में पर्यावरणविद डॉ. रीमा पंत, मनोहर मनराल, डॉ. नवीन जोशी, पर्यावरणविद स्वामी वीत तमसो, डॉ. ए के भारद्वाज, डॉ. गिरीश नेगी, भुपिनदर मनराल, बिशन सिंह, सुशीला सिंह, ब्रिग. धीरेश जोशी, स्याही देवी से गजेंद्र पाठक, संदीप मनराल, सुमित बनेशी, गनेश कठायत, महेन्दर बनेशी, गगन प्रकाश, खीम सिंह, गौरव पंत, गोपाल सिंह, पुष्कर सिंह नेगी, कल्पतरु वृक्षमित्र मितेश्वर आनंद, पवलगढ ग्राम वासियों ने अपने विचार रखे|