गुमदेश का चैतोला मेला- आस्था और विश्वास का प्रतीक, प्रसाद लेने पहुंचते हैं देश विदेश में बसे प्रवासी

[hit_count] नकुल पंत। गुमदेश काली कुमाऊं- ठीक रामनवमी की अंतिम होली के बाद काली कुमाऊं के गुमदेश के चैतोला मेले की तैयारियां शुरू कर दी…

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नकुल पंत। गुमदेश काली कुमाऊं- ठीक रामनवमी की अंतिम होली के बाद काली कुमाऊं के गुमदेश के चैतोला मेले की तैयारियां शुरू कर दी गई हैं। देश विदेश में बसे गुमदेश के वासिंदे मेले में शामिल होने घर वापस लौटने लगे हैं। लगातार तीन दिन तक चलने वाले इस मेले में यूपी सहित उत्तराखंड के जगह जगह से व्यापारी अपनी दुकानें लेकर आते हैं। बताते चलें फसल का पहला भोग आराध्य चौखाम को लगाया जाता है। मेले में घर के चावल का पापड़ के रूप में प्रसाद दिया जाता है। आज भी प्रसाद के रूप में चावल के पापड़ बनाने के लिए ग्रामीण अपने खेत में चावल उगाते है।

एक पौराणिक कथा के अनुसार एक समय एक दैत्य ने पूरे गुमदेश क्षेत्र में अपने आतंक से हाहाकार मचाया था। बताते हैं कि यह भयानक दैत्य प्रतिदिन हर परिवार से एक व्यक्ति का नर संहार करता था। इसी समय जब कोकिला नामक एक वृद्ध महिला के पोते की बारी आ गयी। तब इस वृद्ध महिला कोकिला आमा द्वारा अपने आराध्य देव शिव अवतार चौखाम बाबा की आराधना की गई।

तभी भगवान शिव द्वारा तत्काल अपने गणों को राक्षस का अंत करने का आदेश जारी कर दिया गया। तब शिव गण लाटा देव तथा भराड़ा देव ने उस दैत्य से तीन दिन तक भयंकर युद्ध किया। जिसमे दैत्य को मार उसे एक खेत में दबा दिया गया। वह बड़ा फील्ड आज भी पसारा फील्ड नाम से जाना जाता है। आमा के पोते के साथ ही ग्रामीणों को उस राक्षस से हमेशा हमेशा के लिए छुटकारा मिल गया। राक्षस राज का अंत होते ही गुमदेश क्षेत्र में खुशी की लहर दौड़ गयी। बताते हैं कि तब से इस मेले की महत्ता बनी हुई है।