जनांदोलनों का प्रभाव दूरगामी होता है: नवीन जोशी

पिथौरागढ़। ‘आरंभ स्टडी सर्कल’ की ओर से पिथौरागढ़ के नगरपालिका सभागार में वरिष्ठ साहित्यकार नवीन जोशी के साथ अनौपचारिक बातचीत का कार्यक्रम आयोजित किया गया…

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पिथौरागढ़। ‘आरंभ स्टडी सर्कल’ की ओर से पिथौरागढ़ के नगरपालिका सभागार में वरिष्ठ साहित्यकार नवीन जोशी के साथ अनौपचारिक बातचीत का कार्यक्रम आयोजित किया गया कार्यक्रम पूरी तरह संवादात्मक रहा जिसमें सभागार में मौजूद श्रोताओं के साथ साथ कार्यक्रम में लाइव प्रसारण को देख रहे पाठकों द्वारा भी अपने प्रश्न रखे गए।

कार्यक्रम में उनकी कहानियों, उपन्यासों, उनके पात्रों के चुनाव, रचना प्रक्रिया, उनकी पढ़ने की आदतों और उनके 38 वर्षीय लंबे पत्रकारीय जीवन पर केंद्रित बहुत से सवाल उपस्थित श्रोताओं द्वारा पूछे गए। पूछे गए सवालों में से बहुत से सवाल उत्तराखंड के सामाजिक- राजनीतिक मुद्दों पर भी रहे।

उत्तराखंड की पृष्ठभूमि पर केंद्रित पर तीन महत्वपूर्ण उपन्यास ‘दावानल’ (2006( ‘टिकटशुदा रुक्का’ (2020) एवं ‘देवभूमि डेवलपर्स’ (2022) लिख चुके नवीन जोशी से पाठकों ने उनके उपन्यासों को लेकर बहुत से सवाल पूछे। सभी प्रश्नों का जवाब नवीन जोशी ने बड़े धैर्यपूर्वक एवं सहजता से दिया।

कार्यक्रम में नवीन जोशी ने अपने गणाई गंगोली स्थित रैंतोली गाँव से लखनऊ तक के सफ़र एवं जीवन यात्रा पर बात की। उन्होंने बताया कि कैसे पहाड़ से जुड़ाव उनके लेखन की धड़कन बना। उन्होंने अपने पत्रकारिता के अनुभवों को भी साझा करते हुए पत्रकारिता के मूल्यों में आ रहे बदलावों पर भी प्रकाश डाला।

उत्तराखंड के जन आंदोलनों की विरासत और साहित्य में उनके स्थान पर एक प्रश्न का जवाब देते हुए लेखक ने कहा कि जन आंदोलनों का प्रभाव दूरगामी होता है। कई बार लग सकता है एक आंदोलन अपने उद्देश्य पाए बिना धीमा पड़ गया परंतु उसके विचार और संघर्ष आने वाली पीढ़ियों के लिए मार्गदर्शक बनते हैं।

साहित्य के उद्देश्य पर बात रखते हुए नवीन जोशी जी ने कहा कि किसी कहानी या उपन्यास की सफलता इस बात से निर्धारित होती है की वह समाज और अपने परिवेश की वास्तविकता के कितना करीब है या वह इस समाज को क्या दे सकती है। इसके साथ साथ लेखक की मंशा भी किसी रचना की सार्थकता तय करती है। लिख लेने भर के उद्देश से रची गई कहानी या कविता बहुत प्रभावशाली नहीं हो सकती।

लेखन के लिए पढ़ने की ज़रूरत पर बल देते हुए उन्होंने कहा कि हज़ारों शब्द पढ़ने के बाद ही सौ शब्द लिखे जाने के बारे में सोचा जाना चाहिए। उन्होंने शेखर जोशी, शैलेश मटियानी, गीतांजलि श्री, नीलाक्षी सिंह, ज्ञानरंजन, चंदन पांडेय तथा विदेशी लेखकों में हेमिंग्वे, चेखव और गोर्की आदि को अपने पसंदीदा रचनाकर बताया।

कार्यक्रम के लिए आरंभ स्टडी सर्कल की सराहना करते हुए नवीन जोशी ने कहा कि इस तरह के आयोजनों में युवाओं की सक्रियता उम्मीद जगाती है। इस तरह के आयोजन में इतनी बड़ी संख्या में साहित्यप्रेमियों एवं पाठकों की उपस्थिति पिथौरागढ़ के लिए बहुत अच्छा संकेत है और पिथौरागढ़ जैसी साहित्यिक जीवंतता साहित्य के तथाकथित गढ़ों में भी नहीं दिखाई देती।

कार्यक्रम का संचालन ‘आरंभ’ के अभिषेक ने किया। कार्यक्रम में चिंतामणि जोशी, दिनेश चंद्र भट्ट, रमेश जोशी, सरस्वती कोहली, प्रकाश चंद्र पुनेठा, प्रेम पुनेठा, विनोद उप्रेती, मनोज कुमार, राजेश पंत, प्रकाश जोशी, महेश बराल, भगवती प्रसाद पांडेय, शीला पुनेठा, राजीव जोशी, गिरीश पांडेय, किशोर पाटनी, दीप्ति भट्ट, रचना शर्मा, भूमिका पांडेय, गार्गी, एकता, निर्मल, महेंद्र, दीपक, मोहित, सोमेश, मुकेश, रजत समेत 60 से अधिक युवा, साहित्यप्रेमी एवं रचनाकार मौजूद रहे।