बहुत हो गया बानर घुघुत जैसे आरोप, अब मुद्दे की बात भी कर लो जनाब

पहाड़ में लोकसभा चुनावों में कोसों दूर हुए जनमुद्दे डेस्क। लोकसभा चुनावों को लोकपर्व या अगले पांच वर्षों लिए लिए तकदीर चुनने का पर्व कहा…

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पहाड़ में लोकसभा चुनावों में कोसों दूर हुए जनमुद्दे

डेस्क। लोकसभा चुनावों को लोकपर्व या अगले पांच वर्षों लिए लिए तकदीर चुनने का पर्व कहा जाता है। जनता इस चुनाव में देश की सरकार चुनती है। इसके लिए जनता दरबार में जाने वाले प्रत्याशी अपने वादों या विजन के साथ चुनाव में जाते हैं। लेकिन पहाड़ में इस बार हो रहे चुनाव में जनमुद्दे या समस्याएं कोसों दूर हो गए हैं। पहाड़ में पहाड़ जैसी समस्याएं मुंह बाएं खड़ी हैं। राज्य के पहाड़ी हिस्से और गांव पलायन से खाली हो रहे हैं। स्वास्थ्य सुविधाएं सपना बन गई हैं। बदहाल स्वास्थ्य सेवाओं का मुद्दा हमेशा ज्वलंत रहता है । लेकिन यहां चुनाव लड़ रहे प्रत्याशी और राजनीतिक दलों के सिरमौर कहे जाने वाले नेता आज भी हल्के बयानबाजियों से वोट हासिल करने की जुगत में लगे हैं। हल्द्वानी में जिस तरह राज्य के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों ने इकलू बानर और घुघुत जैसे बयान देकर चुनावों के मुद्दों और अवधारणा को हल्का कर रहे हैं।
ज्वलंत मुद्दों की बात करें तो अल्मोड़ा में मेडीकल कालेज का निर्माण दशक बीत जाने के बाद भी पूरा नहीं हुआ है। आज भी निर्माण सिर्फ 50 फीसदी ही पूरा हो पाया है। 2014 और 2017 के चुनावों में भाजपा और कांग्रेस ने मेडीकल कालेज पर ही जनता से वोट मांगे थे, रुद्रपुर की रैली में भी पीएम नरेन्द्र मोदी भी राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था की पीठ थपथपा चुके है। भारत आयुष्मान और अटल आयुष्मान स्वास्थ्य कार्ड तो हैं लेकिन डाक्टरों की व्यवस्था नहीं होने से पहाड़ के अस्पतालों में ​जटिल प्रसव जैसी सुविधा तक उपलब्ध नहीं है। यहां कार्ड धारक वैसा ही महसूस कर रहा है जैसे मीनू मौजूद होने के बावजूद भोजन उपलब्ध ही नहीं हो।
बताते चले कि राज्य बनने के चार साल बाद अल्मोड़ा जैसे पहाड़ी भू-भाग में मेड़ीकल कालेज की घोषणा होते ही जनता में खुशी की लहर दौड़ गयी थी, 2004 में तत्कालीन सीएम एनडी तिवारी ने इसकी घोषणा की थी लेकिन यह आज तक भी अपना आधा सफर तय नही कर पाया है, जबकि इस मेडीकल कालेज में 2016 में ही कक्षायें शुरु हो जानी थी, लेकिन 2019 में भी एमसीआई की टीम आकर सुविधायें पूरी नही होने से वापस चली गयी है, जिसके लिए अब जनता राज्य सरकारों पर सवाल उठा रही है। और कांग्रेस डंबल इंजन सरकार को दोषी मान रही है।
रुद्रपुर की चुनावी सभा में भले ही पीएम नरेन्द्र मोदी अटल आयुष्मान योजना के माध्यम से सरकार को शाबासी दे चुके है, लेकिन पूरे सूबे के सरकारी अस्पतालों में स्वास्थ सुविधा अभी भी एक सपना ही हैं, सभी अस्पताल डांक्टरों और विशेषज्ञों की कमी से जूझ रहे है लोगों को इलाज के लिए निजी अस्पतालों का रुख करना पड़ रहा है।
दूसरा मुद्दा है पलायन यहां गांव लगातार खाली हो रहे हैं। 2011 की जनगणना में अल्मोड़ा से 10 हजार की जनसंख्या कम होना इसी पलायन का कारण है। अब यहां की जनता के साथ ही नेता भी पलायन कर सु​रक्षित सीट के जुगत में हैं। कई नेता अब मैदान क्षेत्रों मे बस गए हैं। और जहां कभी से वह चुनाव जीत कर आते थे वह क्षेत्र अभी भी बुनियादी सुविधाओं के लिए जूझ रहा है।अल्मोड़ा शहर में पेयजल की व्यवस्था अभी तक ठीक नहीं है। यहां करोड़ो खर्च हो चुके हैं लेकिन नगर में बनाए गए पेयजल टैंकों को भरने में 35 घंटे का समय लगता है और दिन केवल 24 घंटे का होता है ऐसे में गर्मी बढ़ते ही अल्मोड़ा में पानी की किल्लत हर साल खड़ी हो जाती है। उत्तराखण्ड में केवल चुनावी सीज़न पर ही नेताओं को जनसुविधाओं की याद आती है। यदि अपने वादों और घोषणाओं पर राजनीतिक पार्टियां थोड़ा भी गंभीर होती तो मेडीकल कालेजों के निर्माण में दशकों नही लगते व चाहे अल्मोड़ा का मेड़ीकल कालेज हो या फिर रुद्रपुर , बरहाल इस लोकसभा चुनाव में बुनियादें मुद्दे एक बार फिर राजनीतिक दलो के सामने खड़ें हैं अब वह इन पर बात करते हैं या फिर हल्की बयानबाजी और आरोप प्रत्यारोपों के बीच ही चुनाव लड़ते हैं यह उनपर निर्भर है।