यह है नजीर:- जब मातृशक्ति ने दिखाया पर्यावरण संरक्षण का जज्बा उसे हम चिपको आंदोलन कहते हैं

[hit_count] डेस्क :- समाज की परिसम्पत्तियां समाज की होती हैं उनको बचाना सामाजिक जिम्मेदारी है इससे हम बच नहीं सकते यह उद्गार किसी विशेषज्ञ के…

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डेस्क :- समाज की परिसम्पत्तियां समाज की होती हैं उनको बचाना सामाजिक जिम्मेदारी है इससे हम बच नहीं सकते यह उद्गार किसी विशेषज्ञ के नहीं बल्कि उत्तराखंड की मातृ शक्ति ने इसे तब कर दिखाया जब जबाब सिस्टम को देना था| इस बहुचर्चित घटमाक्रम को हम चिपको आंदोलन नाम से जानते हैं|
चिपको आंदोलन
जंगल बचाने के लिए महिलाएं पेडों पर चिपक गई थी।
चमोली जिले में 26 मार्च 1974 को रैणी गांव में गोरा देवी के नेतृत्व में चिपको आंदोलन हुआ था ।आज ग्राम पंचायत रैणी और लाता में बांज और अंगू के पेड़ों का संयुक्त जंगल है जोशीमठ से करीब 27 किलोमीटर की दूरी पर रैंणी गांव स्थित है । आज भी रैणी गांव की महिलाएं जंगल को संवारने और उनको देख रेख के लिए हमेशा आगे रहती है । चिपको आंदोलन से जुड़े लोगो का कहना है कि जब साइमन कमीशन के लोगों के जंगल में अंगूर के पेड़ काटने के लिए आते थे तो गांव की महिलाएं रात भर जंगल को बचाने के लिए बैठक करती थी। गोरा देवी महिलाओं के जंगल बचाने के लिए प्रेरित करती थी आज ग्रामीण इसी जंगल से पशुपालन का कृषि करते हैं । जंगल की अपने परिवार का हिस्सा मानती है प्राकृतिक पानी के स्रोत जिंदा है और सभी लोग इसी जंगल पर निर्भर है। जंगल को बचाने के लिए पहाड़ी क्षेत्रों की महिलाएं आज भी निरंतर संघर्ष कर रही है।आज से करीब 45 साल पहले उत्तराखंड में इस आंदोलन की शुरुआत हुई थी| इस आंदोलन की शुरुआत चंडीप्रसाद भट्ट और गौरा देवी की ओर से की गई थी और भारत के प्रसिद्ध सुंदरलाल बहुगुणा ने आगे इसका नेतृत्व किया|
इस आंदोलन में पेड़ों को काटने से बचने के लिए गांव के लोग पेड़ से चिपक जाते थे, इसी वजह से इस आंदोलन का नाम चिपको आंदोलन पड़ा था|
चिपको आंदोलन की शुरुआत प्रदेश के चमोली जिले में गोपेश्वर नाम के एक स्थान पर की गई थी. आंदोलन साल 1972 में शुरु हुई जंगलों की अंधाधुंध और अवैध कटाई को रोकने के लिए शुरू किया गया|
इस आंदोलन में महिलाओं का भी खास योगदान रहा और इस दौरान कई नारे भी मशहूर हुए और आंदोलन का हिस्सा बने|
इस आंदोलन में वनों की कटाई को रोकने के लिए गांव के पुरुष और महिलाएं पेड़ों से लिपट जाते थे और ठेकेदारों को पेड़ नहीं काटने दिया जाता था| जिस समय यह आंदोलन चल रहा था, उस समय केंद्र की राजनीति में भी पर्यावरण एक एजेंडा बन गया थाय इस आन्दोलन को देखते हुए केंद्र सरकार ने वन संरक्षण अधिनियम बनाया|
इस अधिनियम के तहत वन की रक्षा करना और पर्यावरण को जीवित करना है|
चिपको आंदोलन की सफलता से साल 1980 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने एक विधेयक बनाया था| इस विधेयक में हिमालयी क्षेत्रों के वनों को काटने पर 15 सालों का प्रतिबंध लगा दिया था|चमोली से शुरू हुआ यह आंदोलन प्रदेश और पूरे देश में फैल गया |अल्मोड़ा से पीसी तिवारी, डा. शमशेर सिंह बिष्ट सहित अनेक लोगों ने इस आंदोलन में भाग लिया था |