पिथौरागढ़ में चारों ओर आठूं पर्व की धूम, खेलों से गुंजायमान हुईं घाटियां और चोटियां

पिथौरागढ़। जनपद पिथौरागढ़ में सातूं आठूं पूर्व की धूम शुरू हो गई है। गत बृहस्पतिवार को खेतों में धान के पौधों से पार्वती का प्रतीक…

IMG 20220819 WA0009

पिथौरागढ़। जनपद पिथौरागढ़ में सातूं आठूं पूर्व की धूम शुरू हो गई है। गत बृहस्पतिवार को खेतों में धान के पौधों से पार्वती का प्रतीक गमरा तैयार कर घर में लाने के साथ ही यह पर्व परवान चढ़ने लगा। शुक्रवार को उसी तरह महेसर यानि शिवजी का प्रतीक बनाकर लोकगीतों के गायन के बीच घर लाया गया, जिसके बाद गांवों में पधान राठ के घर उन प्रतीकों को मंदिर के कमरे में स्थापित किया गया।

इसके बाद आंगन में खेल अर्थात लोक गीत और नृत्य की धूम मची। शहरी क्षेत्रों में खेल गायन के लिए सार्वजनिक जगहों का उपयोग किया गया। जिला मुख्यालय में नगरपालिका कार्यालय के पास स्थित रामलीला मैदान में भव्य खेलों का आयोजन हुआ, जिसमें स्त्री, पुरुष और बच्चे बड़ी संख्या में शामिल हुए। अगले कुछ रोज जब तक गमरा और महेसर का किसी पवित्र स्थान पर विसर्जन करने तक गांव घरों और कस्बों में खेलों का जोर शोर से आयोजन जारी रहेगा। अमूमन आठूं पर्व के नाम से जाना जाने वाला यह त्यौहार पहले व्यापक पैमाने पर सप्ताह भर चलता था।

ब्रह्माकुमारीज राजयोग केंद्र में जन्माष्टमी और आठूं पर्व का आयोजन

पिथौरागढ़। ब्रह्मकुमारीज राजयोग केंद्र चिमस्यानौला में जन्माष्टमी तथा सातूं आठूं पर्व की धूमधाम से शुरूआत की गई। इस अवसर पर केंद्र की संचालिका बीके डा उमा पाठक ने योगेश्वर श्रीकृष्ण के जन्म का गूढ़ रहस्य समझाते हुए कहा कि जब सृष्टि पर घोर तमोप्रधानता का अन्धकार छा जाता है तथा विपत्तियों की घनघोर वर्षा होती है तो, ऐसे में श्रीकृष्ण इस धरा पर धर्म की पुनर्स्थापना करने और आसुरी संस्कारों को समाप्त करते हैं। साथ ही आत्मा के मूल धर्म शान्ति, प्रेम व एकता स्थापित करते हैं।

सातूं-आठूं लोक पर्व का महत्व बताते हुए उन्होंने कहा कि कैलाश मानसरोवर के निकट उत्तराखण्ड की यह भूमि शिव – पार्वती के आवागमन तथा उपासना की भूमि है। इसी को यहां गौरा महेश्वर के रूप में खास तौर पर इस पर्व में पूजा जाता है, जिसके अंत में गौरा को महेश्वर के साथ कैलाश की ओर हिमालय में रहने के लिए विदा किया जाता है।

कार्यक्रम के दौरान बीके रिया ऐरी, दीक्षा मखौलिया तथा दिविशा मखौलिया ने श्रीकृष्ण लीला पर नृत्य प्रस्तुत किए। यामिनी ओझा ने गीत प्रस्तुत किया तथा डा भागीरथी गर्ब्याल तथा सुची लुंठी ने जन्माष्टमी पर अपने विचार रखे।
इन पर्वों को बीके बहिनों ने हर्षोल्लास और संगीतमय वातावरण में मनाया।

कार्यक्रम में गोबिंदी खड़ायत, नन्दा ऐरी, जानकी पंत, गीता बिष्ट, सरस्वती वर्मा, कौशल्या गोबाड़ी, चांदनी खोलिया, गीता जोशी, विजया जोशी, जीवंती खाती, कमला मखौलिया, राधा उपाध्याय, पुष्पा नेगी, भागीरथी, रेवती जोशी, गंगा जोशी, सुमन शर्मा आदि उपस्थित थे।