Uttarakhand- कमेटी बनने का मतलब मामला ठंडे बस्ते में डालना और पुरानी पेंशन बहाल नहीं करना है: प्रदेश उपाध्यक्ष उत्तरांचल पर्वतीय कर्मचारी शिक्षक संगठन

अल्मोड़ा। प्रदेश उपाध्यक्ष उत्तरांचल पर्वतीय कर्मचारी शिक्षक संगठन उत्तराखंड धीरेन्द्र कुमार पाठक ने संगठन की मांगों पर बयान देते हुए कहा है कि कमेटी बनने…

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अल्मोड़ा। प्रदेश उपाध्यक्ष उत्तरांचल पर्वतीय कर्मचारी शिक्षक संगठन उत्तराखंड धीरेन्द्र कुमार पाठक ने संगठन की मांगों पर बयान देते हुए कहा है कि कमेटी बनने का मतलब है कि मामलों को ठंडे बस्ते में डालो, पुरानी पेंशन बहाल नहीं करना, वर्तमान सरकार द्वारा गोल्डन कार्ड की विसंगतियों को दूर नहीं करना, शिथिलीकरण को विस्तारित नहीं करना व एक्ट में निरंकुशता व मनमाने व्यवहार व वेतनमानों को डाउनग्रेड करने की कोशिश यह दर्शाती है कि सरकार की नौकरशाही अब तक की उपलब्धि को शून्य करने की कोशिश कर रही है।

अपने जारी बयान में उन्होंने कहा कि कलियुग की लोकतांत्रिक सरकारें ऐसा कर सकती हैं किसी के भी द्वारा सोचा नहीं गया होगा। निश्चित रूप से विरोध जरूरी है। एक के बाद एक कार्मिक विरोधी निर्णय निरंकुशता का परिचायक है। सभी शिक्षको कार्मिकों को जो चिकित्सा प्रतिपूर्ति बिना पैसे के उपलब्ध थी और एक अरब से भी ऊपर की धनराशि का भुगतान चिकित्सा प्रतिपूर्ति के रूप में होता था और आज क्रमशः1000, 650, 450, 250 से अधिक की धनराशि कटौती प्रतिमाह होने के बाद भी ठन ठन गोपाल वाली स्थिति है। पेंशनर को भी नहीं बक्शा गया है।

कहा कि अलोकतांत्रिक फैसलों का विरोध हर हाल में किया जायेगा। एक्ट में भी अनुरोध के आधार पर स्थानांतरण में पहला दूसरा विकल्प छोड़कर अन्य विकल्प दिए गए हैं आखिर पहला विकल्प किस नियम के तहत आरक्षित किया गया है। सभी निर्णयों का विरोध किया जा रहा है। एक्ट में संशोधन जरूरी है। अनुरोध व अनिवार्य स्थानांतरण में काउंसलिंग जरूरी है अन्यथा विभागों में व स्थानांतरण कमेटी की मनमानी है । हर जनपद में 40 प्रतिशत दुर्गम व 60 प्रतिशत सुगम होना आवश्यक है अन्यथा कार्मिकों को भारी विसंगति व परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।

कहा कि नई भर्ती में दुर्गम के साथ साथ सुगम भी देना चाहिए अन्यथा देहरादून नैनीताल ऊधमसिह नगर हरिद्वार जनपद में नई नियुक्ति नहीं होने पर सुगम क्षेत्रों में कार्मिकों के निचले स्तर के पद रिक्त हो गये है और जरूरी नहीं है कि दुर्गम की अवधि को नौकरी के शुरुआती दिनों में ही व्यतीत किया जाय ।

विधवा व विधुर कार्मिकों को अनिवार्य स्थानांतरण में छूट देनी चाहिए और शहीद सैनिक के आश्रितों को भी पदोन्नति व स्थानांतरण में काउंसलिंग में वरीयता दिये जाने की आवश्यकता है। मुख्य प्रशासनिक अधिकारी को जिला बदर का कोई औचित्य व आधार नहीं है समूह ख के पद के अनुरूप कोई सुविधा नहीं है बल्कि पटल सहायक तक के सारे कार्य का संचालन करना है। शासन द्वारा कार्य व उत्तरदायित्व का प्रख्यापन नहीं किया गया है आहरण वितरण अधिकार पर भी निश्चित रूप से मिलने चाहिए। एक्ट में बदलाव जरूरी है।

कहा कि फारगो नियमावली का कोई औचित्य नहीं है जब एक्ट 100 प्रतिशत लागू नहीं है तो फारगो नियमावली 100 प्रतिशत क्यों लागू है। सरकार को जबाव देना चाहिए। वेतनमानों को डाउनग्रेड करने की योजना से समस्त कार्मिकों संगठनों का ढांचा ध्वस्त हो जायेगा और समस्याओं का अंतहीन सिलसिला शुरू हो जायेगा।

उत्तराखंड राज्य बनाने के लिए हम सभी के द्वारा तीन महीने से अधिक हड़ताल की गई और आज सरकार राज्य कार्मिकों के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार कर रही है किसी भी दशा में बर्दाश्त नहीं किया जायेगा सभी को एकजुटता दिखानी होगी और दोनों मंडलों में शीर्ष स्तर पर भी बराबर का प्रतिनिधित्व देना चाहिए ताकि क्षेत्रीय संतुलन भी कायम रहे । विसंगति कहीं भी हो उचित नहीं है। सरकार द्वारा कार्मिकों के अस्तित्व पर ही चोट पहुंचाने की कोशिश की जा रही इसे बर्दाश्त नहीं किया जायेगा। सभी सदस्यों व पदाधिकारियों से भी अनुरोध है कि एकजुटता दिखानी होगी और धरातल पर भी कड़े फैसले लेने होंगे तभी परिणाम निकलेंगे।