परंपरा : समय के साथ साथ भिटौली (BHITOLI)दिए जाने की परंपरा में आ रहा बदलाव

हिमानी गहतोड़ी। समय के साथ ही हमारे पारंपरिक तीज त्योहारों में बदलाव दिखाई दे रहा है, नव संवत्सर शुरू होते ही चैत्र मास में बहिन…

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हिमानी गहतोड़ी। समय के साथ ही हमारे पारंपरिक तीज त्योहारों में बदलाव दिखाई दे रहा है, नव संवत्सर शुरू होते ही चैत्र मास में बहिन बेटियों को दिया जाते रही भिटौली (BHITOLI) का रिवाज बहुत पहले से चली आ रही परंपरा रही है। लेकिन बीते दौर में यह परंपरा भी धीरे धीरे अपना स्वरूप बदल रही है। अब बहिन बेटियों को भिटौली (BHITOLI) के रूप में अनाज, फल और वस्त्र की जगह महज दान दक्षिणा देकर परंपरा का निर्वहन किया जा रहा है।

नव संवत्सर शुरू होते ही पूरे चैत्र मास में हमारे समाज में घर की व्याही बहिन बेटियों को उनकी ससुराल जाकर भिटौली (BHITOLI) दिए जाने की परंपरा आदिकाल से चली आ रही है। इसके तहत विवाहिता का पिता या भाई अपनी लाड़ली के लिए घर से तरह तरह के पकवान, मिठाई, अनाज, फल, वस्त्र और दक्षिणा आदि उसके घर भिटौली (BHITOLI) के रूप में पहुंचाया करते थे। लेकिन अब इस सब की जगह महज दान दक्षिणा के रूप में दिए जाने वाले रुपए पैंसे ने ले लिया है। पिछले कई सालों से अब लाडली के मायके से ही मनिआडर के रूप में कुछ बहुत दान दक्षिणा देकर परंपरा का निर्वहन कर दिया जा रहा है। जो आने वाली पीढ़ी के लिए एक अच्छी बात नहीं है। इससे हमारी परंपरा धीरे-धीरे विलुप्ति की कगार पर बढ़ती चली जा रही है।