शिक्षा और समाज के बहुआयामी संबंधों पर ई – दखल

पिथौरागढ़। तीन दिवसीय शैक्षिक ई-दखल संवाद का प्रारंभ बीते 1 जुलाई शुक्रवार को हुआ। दिन में 3 बजे से शिक्षा व समाज के सरोकारों पर…

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पिथौरागढ़। तीन दिवसीय शैक्षिक ई-दखल संवाद का प्रारंभ बीते 1 जुलाई शुक्रवार को हुआ। दिन में 3 बजे से शिक्षा व समाज के सरोकारों पर बहुआयामी संवाद गूगल मीट, शैक्षिक दखल के यू ट्यूब चैनल व फ़ेसबूक पेज पर लाइव किया गया।

प्रथम दिवस के पहले सत्र का स्वागत एवं परिचय राजीव जोशी ने दिया। इस सत्र में ई संवाद के अंतर्गत नई शिक्षा नीति, जीवन निर्माण में पुस्तकालय की भूमिका, शैक्षिक दखल के कल, आज और कल के सफर पर संवाद और शैक्षिक दख़ल वेब पत्रिका पर चर्चा हुई। इस अवसर पर पढ़ने-लिखने की संस्कृति को बढ़ावा देती बाल पाठक प्रोत्साहन योजना के प्रथम अनुभवों को भी साझा किया गया। इसके बाद रेखा चमोली ने प्रथम दिवस की मुख्य वक्ता का परिचय व विषय की भूमिका रखी।

मुख्य वक्ता डॉ रश्मि रावत, असिस्टेंट प्रोफेसर, हिंदी विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा “नई शिक्षा नीति, संभावनाएँ व सीमाएँ” विषय के अंतर्गत अपने अनुभव साझा किए गए। डॉ रावत ने शिक्षा नीति के विभिन्न पहलुओं पर बात करते हुए कहा कि सार्वजनिक शिक्षा के ढांचे का विकास किए बिना नीति के लक्ष्यों को प्राप्त करना संभव नहीं है।
उनके संबोधन के बाद सत्राधारित प्रश्नों का संकलन एवं प्रश्नकाल हुआ, जिसका संचालन प्रदीप बहुगुणा ने किया। शाम 5 बजे कार्यक्रम का समापन और सार संक्षेप महेश बवाड़ी द्वारा किया गया। इस वेबिनार में देश भर से 100 से अधिक प्रतिभागियों की सहभागिता रही।

संवाद के दूसरे दिन शनिवार को सत्र का संचालन करते हुए डॉ विवेक पांडेय ने शैक्षिक दखल के पुस्तकालय अभियान व पढ़ने-लिखने की सँस्कृति के विकास में शैक्षिक दखल की गतिविधियों का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि शैक्षिक दखल से जुड़े हुए शिक्षक अपने निजी पुस्तकालयों को सार्वजनिक करते हैं। अपने विद्यालयों में पुस्तकालयों का संचालन करते हैं। अपने विद्यार्थियों के साथ मिलकर आसपास के गांवों में पुस्तकालयों के संचालन की मुहिम चलाई जा रही है। इसी क्रम में शैक्षिक दखल के कार्यालय रानीबाग में दिनेश कर्नाटक व पिथौरागढ़ में महेश पुनेठा के निजी पुस्तकालय को सार्वजनिक किया जाना इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। प्रख्यात साहित्यकार व सम्पादक प्रियदर्शन के व्यक्तित्व व कृतित्व को प्रस्तुत करते हुए स्वाति मेलकानी ने उनके घनघोर पढ़ाकू जीवन को प्रस्तुत किया।

अपने व्याख्यान में प्रियदर्शन ने अपने जीवन के शुरुवाती वर्षों में राम कृष्ण मिशन व ब्रिटिश लाइब्रेरी से मिली किताबों का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि किताबें न होती तो उनका जीवन अधूरा, सपाट व नीरस होता। मैं आज जो भी हूं, उन पुस्तकालयों – किताबों की वजह से हूं। उन्होंने कहा कि किताबें जीवन में अन्य महत्वपूर्ण चीजों की तरह ही हैं। उनके बिना एक विश्लेषणात्मक मस्तिष्क नहीं बन सकता। इसलिए मनुष्य बनने के लिए पढ़ना, समझना व सीखना जरूरी है। यह अपने जगत से संवेदित होने की प्रक्रिया है।

अपने ववक्तव्य से पहले प्रियदर्शन ने शैक्षिक दखल के पुस्तकालयों के अनुभवों को प्रस्तुत कर नए अंक का विमोचन किया। दिनेश कर्नाटक ने अतिथि वक्ता का आभार प्रकट करते हुए वर्ष 2021 के ‘बाल पाठक प्रोत्साहन योजना’ से पुरस्कृत पांचों पाठकों के नाम की घोषणा की। जिसके तहत खरसडा जिला टिहरी गढ़वाल से मोहित, नानकमत्ता पब्लिक स्कूल से कृति अटवाल, गायित्री, दीपिका व करणवीर को पुरुस्कार स्वरूप पुस्तकों का एक-एक सेट प्रदान किया। पुरस्कृत पाठकों के अनुभवों को सुनते हुए अध्ययन के आत्मविश्वास को सभी ने सराहा। युवाओं के अनुभवों से यह सीखने को मिला कि पुस्तकों से जुड़ने की प्रक्रिया किस तरह गति पकड़ती है और बच्चे किताबों की दुनिया पहुंचकर कितने आनंदित होते हैं।

अंत मे डॉ दिनेश जोशी ने सार संक्षेप प्रस्तुत करते हुए सुझाव दिया कि शैक्षिक दखल पत्रिका में बच्चों के पढ़ने-लिखने के अनुभवों को भी स्थान दिया जाना चाहिए। सत्र के समापन की घोषणा करते हुए उन्होंने 3 जुलाई के अंतिम सत्र में शाम तीन बजे से जुड़ने की अपील की जिसमें शैक्षिक दखल की ई पत्रिका की शुरुवात व शैक्षिक सुधारों के अभियान पर बातचीत की जाएगी। सत्र में चकमक पत्रिका के पूर्व संपादक राजेश उत्साही, बांदा से प्रमोद दीक्षित, इंद्रमणि भट्ट, मोहन चौहान, कमलेश अटवाल, रेखा चमोली, प्रदीप बहुगुणा, मनोहर चमोली, चिन्तामणि जोशी सहित दर्जनों शिक्षकों और अन्य प्रबुद्ध जनों ने गूगल मीट, फेसबुक लाइव व यू ट्यूब के माध्यम से शिरकत की।