इसे कहते हैं रचनात्मक आंदोलन— आंदोलन स्थल से घर जाने से पूर्व आल्पस कर्मियों ने की पूरे परिसर की सफाई, आंदोलन क्षेत्र को हुल्लड़ क्षेत्र बनाने वालों के लिए है सबक

अल्मोड़ा। पेट की आग और भविष्य के अंधकारमय होने की आहट को देखते हुए गांधीपार्क चौघानपाटा में 65 दिन से आंदोलन और 46 दिन से…

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अल्मोड़ा। पेट की आग और भविष्य के अंधकारमय होने की आहट को देखते हुए गांधीपार्क चौघानपाटा में 65 दिन से आंदोलन और 46 दिन से आमरण अनशन कर रहे आल्पस कर्मियों ने मंगलवार को आदर्श आचार संहिता की मर्यादा का पालन करते हुए प्रशासन के अनुरोध को मानते हुए अपना आंदोलन आचार संहिता केप्रभावी रहने तक ​स्थगित करने का निर्णय लिया। लेकिन असली बात इस निर्णय के बाद सामने आई।
प्रशासन के अधिकारियों के सामने जूस पीकर आंदोलन तोड़ने वाले कर्मचारियों ने आंदोलन ​स्थगित करना आम बात है। लेकिन आंदोलन स्थगित करने के बाद 65 दिन से जिस स्थान पर वह बैठे थे वहां पूरी तरह साफ सफाई की गई। पार्क प्रांगण गांधी मूर्ति और अनशन स्थल के फर्श को पूरी तरह साफ किया गया। जबकि हर कर्मी को मालूम था​ कि उन्होंने निराशा में आंदोलन तोड़ा है लेकिन एक रचानात्मकता ने उन्होंने हर वर्ग का दिल जीत लिया। साथ ही आंदोनल स्थल को हुल्लड़ या कूड़े का ढेर बनाने वाले तथाकथित नेताओं को यह कार्य सबक भी सिखा गया। आए दिन आंदोलन वाले स्थलों में कूड़ा करकट का ढेर नजर आता है। यदाकदा वहां काफी गंदगी भी दिखती है। पहली बार दिखा कि आंदोलन में जमे रहने और मांग पूरी नहीं होने की निराशा के बाद भी आंदोलन स्थल को साफ सुथरा बनाने का जो जज्बा आल्पस कर्मियों ने दिखाया वह सराहनीय है। हालाकिं अनशनकारियों ने कहा है कि यह आंदोलन केवल स्थगित किया गया है उनकी मांग नहीं माने जाने पर वह दोबारा आंदोलन शुरू करेंगे। मालूम हो कि 26 जनवरी से आल्पस कर्मी यहां आमरण अनशन पर बैठ गए थे। स्वच्छता और अपने स्थल से लगाव रखने की यह जीवटता श्रमसाधकों में ही आ सकती है। उत्तरा न्यूज इस जीवटता को सलाम करता है।

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