न्यायसंगत एनेर्जी ट्रांज़िशन के लिए कोयला खदान श्रमिकों के हितों का भी रखना होगा ध्यान

पर्यावरण के प्रति प्रतिबद्धता के अनुरूप, भारत 2070 तक नेट ज़ीरो के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कार्बन एमिशन की तीव्रता को कम करने…

For equitable energy transition, the interests of coal mine workers will also have to be taken care of.

पर्यावरण के प्रति प्रतिबद्धता के अनुरूप, भारत 2070 तक नेट ज़ीरो के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कार्बन एमिशन की तीव्रता को कम करने के लिए वैश्विक स्तर पर लगातार काम कर रहा है।

भारत में बिजली उत्पादन के स्त्रोतों पर नज़र डालें तो यह क्षेत्र वैसे तो दुनिया भर का सबसे विविध बिजली उत्पादन क्षेत्रों में से एक है , लेकिन भारत में कोयले द्वारा तापीय विद्युत उत्पादन कुल उत्पादन क्षमता का लगभग 62% है। ऐसे में पारंपरिक बिजली से स्वच्छ ईंधन-आधारित ऊर्जा उत्पादन में ट्रांज़िशन के लिए, एक समग्र दृष्टिकोण के माध्यम से, कोयला खदान श्रमिकों के हितों की रक्षा करना बेहद ज़रूरी है। एनेर्जी ट्रांज़िशन के नाम पर उन लोगों और उनसे जुड़े परिवारों को अनदेखा नहीं किया जा सकता जिनका जीवन और एक लिहाज से अस्तित्व कोयला खदानों से जुड़ा है।

उनकी आर्थिक मजबूरीयों को दूर करने के लिए एक कौशल विकास कार्य योजना तैयार करनी होगी। साथ ही, उनका पुनर्वास सुनिश्चित करने के लिए, उनको किसी नए रोजगार के लिए प्रशिक्षित करने का मजबूत ढांचा भी तैयार करना होगा। ये कहना है ईवाई, एसईडी फंड और फिक्की के साझा प्रयास से तैयार, “स्किल एक्शन प्लान टू फ्यूल ट्रांज़िशन फ़्रोम कोल तो रिन्युब्ल एनेर्जी इन इंडिया” नाम की रिपोर्ट का।

रिपोर्ट के लॉन्च पर बोलते हुए, ईवाई में पार्टनर और लीडर (पावर एंड यूटिलिटीज) जीपीएस, सोमेश कुमार ने कहा, “पर्यावरण के प्रति भारत की प्रतिबद्धताओं को देखते हुए, देश अब कोयला आधारित ऊर्जा से रीन्यूब्ल एनेर्जी में ट्रांज़िशन के लिए कमर कस रहा है। फ़िलहाल भारत में जस्ट ट्रांज़िशन या न्यायसंगत एनेर्जी ट्रांज़िशन एक उभरता हुआ विषय है, लेकिन अब वक़्त है इसके रणनीतिबद्ध तरीके से सर्वांगीण विकास को सुनिश्चित करने का। ऐसा इसलिए ज़रूरी है क्यों की कोयला आधारित बिजली उत्पादन की पूरी मूल्य शृंखला में अनगिनत परिवार जुड़े हैं। और इस ट्रांज़िशन के न्यायसंगत होने के लिए उन परिवारों के हितों का दध्यान रखना बेहद ज़रूरी है। यह जरूरी है कि कोयला श्रमिकों को कोयला क्षेत्र से बाहर निकलने में मदद दी जाए और उन्हें दूसरे वैकल्पिक रोजगारों के लिए आवश्यक कौशल प्रदान किया जाए।”

आगे, जीपीएस के पार्टनर और लीडर (सोशल एंड स्किल्स सेक्टर) अमित वात्स्यायन कहते हैं, “कोयला खदान श्रमिकों के कौशल और उद्यमिता विकास पर ही जस्ट ट्रांज़िशन की सफलता और प्रासंगिकता टिकी हुई है। ऐसा करना कोयले पर निर्भर क्षेत्रों के आर्थिक विविधीकरण को सुनिश्चित करेगा और इन क्षेत्रों में निवेश को भी आकर्षित करेगा। यह रिपोर्ट एक ऐसे ट्रांज़िशन ढांचे के विकास पर केंद्रित है जिसका उपयोग जिलों या राज्यों द्वारा यह सुनिश्चित करने के लिए किया जा सकता है कि न सिर्फ़ प्रभावित कोयला खदान श्रमिकों की आजीविका में व्यवधान कम से कम हो, उन्हें पर्याप्त अवसर भी प्रदान किए जाएं। इस ट्रांज़िशन को जस्ट या न्यायसंगत तब ही कहा जा सकता है जब सबसे गरीब और सबसे आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के हितों की रक्षा की जाती है।”

एक न्यायपूर्ण परिवर्तन की आवश्यकता पर जोर देते हुए , विपुल तुली, अध्यक्ष, फिक्की पावर कमेटी और सीईओ-दक्षिण एशिया, सेम्बकॉर्प इंडस्ट्रीज ने कहा, “कोयले से दूर होने से देश पर दूरगामी प्रभाव पड़ेंगे। यह पूरी कार्य योजना, इसकी लागत, पुनर्नियोजन और इससे जुड़े तमाम पक्ष राष्ट्रीय और बहुपक्षीय स्तर पर महत्व रखता है। “

रिपोर्ट की मुख्य बातें

जैसे-जैसे ऊर्जा क्षेत्र में थर्मल से नवीकरणीय स्रोत की ओर झुकाव बढ़ेगा, ऊर्जा की मांग भी बढ़ेगी जिससे कोयले पर निर्भरता भी आने वाले वर्षों में और बढ़ने की उम्मीद है। इसलिए, भारत के सामने एक दोहरी चुनौती है – अपने ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करना और थर्मल क्षेत्र से जुड़े कार्यबल का सही प्रबंधन करना। भारत में लगभग 50% खदानें अत्यधिक लाभहीन हैं और जल्द ही बंद हो सकती हैं जिससे उन खदानों में श्रमिकों की आजीविका प्रभावित हो सकती है।

कार्यबल पर बदलाव का प्रभाव
कोयला खदानों से 7.25 लाख से अधिक प्रत्यक्ष रोजगार और कई अप्रत्यक्ष रोजगार सृजित होते हैं। पुराने कोयला संयंत्रों के बंद होने और खदानों के बंद होने से पांच राज्यों पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड और महाराष्ट्र में हजारों कोयला खदान श्रमिकों की आजीविका में व्यवधान का खतरा है। उनमें से ज्यादातर ब्लू-कॉलर कार्यकर्ता हैं जिन्हें समय के नए कौशल के साथ कुशल बनाने की आवश्यकता है। प्रत्यक्ष श्रमिकों के अलावा, खनन जिलों की पूरी अर्थव्यवस्था कोयले से संबंधित गतिविधियों के इर्द-गिर्द घूमती है, और समुदायों ने पीढ़ियों से इस पर भरोसा किया है।

जस्ट ट्रांजिशन’ की अवधारणा

‘जस्ट ट्रांजिशन’ कोयला खदान श्रमिकों की आजीविका के संभावित नुकसान के कारण आर्थिक कमजोरियों को संबोधित करता है। वैकल्पिक उद्योगों में खनिकों के पुन: एकीकरण के लिए आर्थिक विविधीकरण और आजीविका को बढ़ावा देने की सुविधा पर जोर देना महत्वपूर्ण है। विभिन्न रीस्किलिंग कार्यक्रम प्रभावित खनिकों को कोयला खनन उद्योग से बाहर निकलने के लिए नए कौशल और संसाधन हासिल करने में सक्षम बनाएंगे। उद्यमिता विकास और एमएसएमई को बढ़ावा देना कोयला पर निर्भर उद्योग कस्बों की अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने और विविधता लाने में प्रमुख कारक होंगे।

राज्य कौशल कार्य योजना

रिपोर्ट में कौशल कार्य योजनाओं की रूपरेखा दी गई है जो परिवर्तनशील खनिकों के लिए उद्योग-प्रासंगिक कौशल और आजीविका संवर्धन हस्तक्षेपों को डिजाइन करने में मदद करने के लिए कार्यों के खाके/ढांचे के रूप में कार्य करेगी। ये योजनाएं राज्यों को श्रमिकों की संक्रमसंबंधी जरूरतों को पूरा करने की रणनीति के साथ नेतृत्व करने के लिए सशक्त बनाएंगी। कौशल कार्य योजना के घटकों में निम्नलिखित शामिल हैं:

संभावित नौकरी के नुकसान का अनुमान लगाते हुए भौगोलिक समूहों की पहचान
लक्षित जनसंख्या का आकलन – खनिक
प्रमुख उद्योग चालकों और अनिवार्यताओं की पहचान
चल रहे कौशल वृद्धि और आजीविका सहायता कार्यक्रमों में तालमेल बनाना
वित्त पोषण और कार्यक्रम वितरण सहायता के लिए सहयोग और संस्थागत सुदृढ़ीकरण
अभिसरण कार्यक्रम वितरण को साकार करने के लिए पदाधिकारियों की क्षमता निर्माण
खनिकों को कार्यक्रमों के लाभों का आकलन करने के लिए निगरानी और प्रभाव मूल्यांकन
ज्ञान प्रबंधन – रेडी रेकनर्स, वैश्विक और राष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रथाओं आदि का भंडार।