Uttarakhand Election 2022 : कर्णप्रयाग सीट से चुनाव मैदान में हैं आंदोलनकारी इन्द्रेश (indresh-maikhuri)

उत्तरान्यूज डेस्क, 15 जनवरी 2022— Uttarakhand Election 2022 में जनसंघर्षों के परिचायक और आंदोलनकारी इन्द्रेश मैखुरी भी कर्णप्रयाग सीट से भाकपा माले के प्रत्याशी के…

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उत्तरान्यूज डेस्क, 15 जनवरी 2022— Uttarakhand Election 2022 में जनसंघर्षों के परिचायक और आंदोलनकारी इन्द्रेश मैखुरी भी कर्णप्रयाग सीट से भाकपा माले के प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं।

माले ने गढ़वाल मण्डल की कर्णप्रयाग(Karnprayag) व कुमाउं मण्डल की लालकुआं(Lalkuan) विधानसभा सीट पर चुनाव लड़ने के लिए तैयारी की है। काफी समय पहले ही इन दो सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा कर दी थी।

माले ने कर्णप्रयाग से गढ़वाल विश्वविद्यालय (HNB Garhwal University) के पूर्व अध्यक्ष इन्द्रेश मैखुरी (Indresh Maikhuri) को चुनाव मैदान में उतारा है।

इस सीट पर सबसे पहले भाकपा (माले) ने अपने प्रत्याशी के तौर पर इंद्रेश मैखुरी को मैदान में उतारने की घोषणा की थी।
अभी भी राष्ट्रीय दल यहा अपने प्रत्याशियों का चयन नहीं कर पाए हैं। वहीं माले ने (Karnprayag) विधानसभा सीट पर अपना प्रत्याशी मैदान में उतार दिया है।

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इन्द्रेश मैखुरी (Indresh Maikhuri) चमोली जिले के कर्णप्रयाग ब्लॉक के ही मैखुरा गांव के निवासी हैं। चमोली के साथ पूरे प्रदेश में जन आंदोलनों से जुड़े रहने वाले इंद्रेश 1994 में कक्षा 12वीं से ही छात्र जीवन से उत्तराखंड राज्य आंदोलन में सक्रिय हो गए थे।

वह राज्य आंदोलन में जेल भी गए इसके बाद साल 2000 में गढ़वाल विश्विद्यालय के छात्र संघ अध्यक्ष रहे इन्द्रेश जबकि 2006 से 2008 तक भाकपा माले की छात्र शाखा आइसा के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रहे।वर्तमान में इंद्रेश मैखुरी भाकपा (माले) राज्य कमेटी के सदस्य और गढ़वाल सचिव भी हैं। हाल ही में (पिछले वर्ष 2021 में)नंदप्रयाग-घाट सड़क आंदोलन में भी इंद्रेश मैखुरी की अहम भूमिका रही।

इन्द्रेश कर्णप्रयाग सीट से पहले भी चुनाव लड़ चुके हैं वह साल 2002, 2012 और 2017 में विधानसभा चुनाव लड़ चुके हैं। कम संसाधनों के बल पर भी इन्द्रेश 2017 के चुनाव में मैखुरी भाजपा-कांग्रेस प्रत्याशियों के बाद तीसरे स्थान पर रहे थे।

जानकार इन्द्रेश की राजनीति को जनपक्षकारी की जुनून की हद बताते हैं। इन्द्रेश सोशल मीडिया में भी अपनी बात बेबाकी से रखते हैं इसके चलते कर्णप्रयाग में उन्हें कम से कम पहचान का संकट तो कतई नहीं हैं। इन्द्रेश का कहना है कि राज्य बने 21 साल हो गए हैं। कई सत्ताएं यहा इस अवधि में बदल गई हैं लेकिन लेकिन स्थायी राजधानी गैरसैंण, शिक्षा और स्वास्थ्य, जल-जंगल-जमीन आदि की आवाज विधानसभा तक नहीं पहुंच पाती है। ऐसे में वो जमीन से जुड़े मुद्दों को लेकर चुनाव लड़ने जा रहे हैं।

हालांकि लोकप्रियता ही चुनावी जीत का पूरा मापदंड वर्तमान दौर में नहीं होती है नतीजा तो बाद में ही पता चलेगा लेकिन इतना तय है कि यहां चुनाव दिलचस्प जरूर रहेगा।

कर्णप्रयाग (Karnprayag) दुरह भौगौलिक क्षेत्र वाली सीट है गैरसैण (Gairsain)भी इसी विधानसभा के अंतर्गत आता है तो अल्मोड़ा जिले के चौखुटिया से लगे इस क्षेत्र में विकास के नारों के बीच कई दर्द हैं। सीमावर्ती क्षेत्र में सड़के, स्वास्थ्य ,रोजगार अभी भी एक बड़ा सपना है। माईथान क्षेत्र इसका सीमावर्ती क्षेत्र है। दर्जनों गांव आज भी बुनियादी सुविधाओं के सर्वसुलभ होने का इंतजार कर रहे हैं।