Uttarakhand- वन पंचायतों के सशक्तीकरण हेतु मुख्यमंत्री को सरपंचों ने भेजा मांगपत्र

जनपद अल्मोडा और चंपावत के सरपंचों ने वन पंचायतों के सशक्तीकरण हेतु आवश्यक कदम उठाने का आग्रह करते हुए उत्तराखंड के मुख्यमंत्री को 8 सूत्रीय…

जनपद अल्मोडा और चंपावत के सरपंचों ने वन पंचायतों के सशक्तीकरण हेतु आवश्यक कदम उठाने का आग्रह करते हुए उत्तराखंड के मुख्यमंत्री को 8 सूत्रीय एक ज्ञापन प्रेषित किया है। ज्ञापन के माध्यम से कहा गया है कि उत्तराखण्ड में स्थित वन पंचायत लोक आधारित वन प्रबंधन की एक सस्ती लोकप्रिय अनूठी व्यवस्था है जिसे उन्होंने ब्रिटिश हुकुमत के साथ एक लम्बे संघर्ष के बाद हासिल किया है।

कहा कि सरकारी दस्तावेजों के अनुसार वर्तमान में यहां मौजूद 12089 वन पंचायतें वृहद वन क्षेत्र का प्रबंधन कर रही है, लेकिन शासन प्रशासन की उपेक्षा के चलते आज वन पंचायते भारी संकट के दौर से गुजर रही है। उन्होंने मांग उठाई कि वन पंचायतों के चुनाव समस्त प्रदेश में एक साथ गुप्त मतदान द्वारा कराये जाय। पंचायती वनों का न्यूनतम क्षेत्रफल की आबादी के अनुसार निर्धारित किया जाय जिन वन पंचायतों का क्षेत्रफल कम है उनमें आरक्षित वन क्षेत्र मिलाकर उनका विस्तार किया जाय।

कहा कि करोडों रूपये की वन संपदा की सुरक्षा कर रही वन पंचायत स्वयं बदहाल है। आर्थिक सहयोग न मिल पाने के कारण पंचायती वनों के संरक्षण में प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। अतः वन पंचायतों को नियमित बजट उपलब्ध कराया जाये तथा पंचायती वन के भीतर किये जाने वाले वन एवं जल संरक्षण सहित समस्त विकास कार्य वन पंचायत के माध्यम से कराये जाये।

उन्होंने मांग उठाई कि जान जोखिम में डालकर वनों की सुरक्षा कर रहे सरपंच खुद असुरक्षित है। खूखार जंगली जानवरों का भय तो बना ही रहता है साथ ही वनागनि पर नियंत्रण करते हुए प्रत्येक वर्ष कई सरपंच झुलस जाते है। बावजूद इसके वे अपनी जिम्मेदारियों का बखूबी निर्वहन कर रहे हैं। अत सरपंधों का मनोबल बढ़ाने तथा यात्रा एवं अन्य आवश्यक कार्य हेतु उन्हें सम्मानजनक मानदेय दिया जाय।

कहा कि वन पंचायतों की लीसा रॉयल्टी का पैसा वर्षों तक बन पंचायत के खाते में नहीं डाला जा रहा है जिससे वन पंचायतों में विकास कार्य बाधित हो रहे हैं। अतः अब तक की धनराशि तत्काल उपलब्ध कराई जाए। साथ ही भविष्य में वन पंचायतों को उनकी रायल्टी का पैसा समय से मिलने की व्यवस्था सुनिश्चित की जाय।

पंचायतों के गठन के समय 1931 की वन पंचायत नियमावली में वन पंचायतों को वन विभाग हस्तक्षेप से मुक्त रखा गया था, परन्तु आज वन पंचायत पूरी तरह से वन विभाग के नियंत्रण में दी गयी है। अतः वन पंचायतों को वन विभाग के नियंत्रण से मुक्त कर उनकी स्वायत्तता पुनः बहाल की जाय।

वन पंचायतों को वनाधिकार कानून 2006 के दायरे में लाया जाय। वन पंचायत नियमावली में 2001 में किये गये संशोधन में ब्लाक, जिला एवं राज्य स्तर पर परामर्श दात्री समितियों के गठन की धारा की गयी थी, लेकिन इतना समय बीत जाने के बाद भी कुछ जिला एवं ब्लाक को छोड़ इन परामर्शदात्री समितियों का गठन नहीं किया गया है। अतः यथाशीघ्र इन समितियों का गठन किया जाय। राज्य स्तरीय परामर्शदात्री समिति का अध्यक्ष वन पंचायत सरपंच को बनाया जाय, जिसका चयन जिला परामर्शदात्री समिति के अध्यक्ष अपने में करें ऐसा सुनिश्चित की जाय।