‘सरकार’ की चुप्पी का जवाब देती उपन्यास ‘the नियोजित शिक्षक’

उपन्यास : the नियोजित शिक्षक लेखक : तत्सम्यक् मनु शीर्षक : ‘सरकार’ की चुप्पी का जवाब देती उपन्यास ‘the नियोजित शिक्षक’ समीक्षक : सुधीर कुमार,…

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उपन्यास : the नियोजित शिक्षक

लेखक : तत्सम्यक् मनु

शीर्षक : ‘सरकार’ की चुप्पी का जवाब देती उपन्यास ‘the नियोजित शिक्षक’

समीक्षक : सुधीर कुमार, हाजीपुर, बिहार.

हाल-फ़िलहाल नियोजित शिक्षकों के ज़िन्दगी पर लिखा उपन्यास मेरे हाथ आया. पेशे से शिक्षक होने के कारण उपन्यास के प्रति मेरी दिलचस्पी बढ़ी, मैंने उपन्यास amazon से आर्डर किया और कुछ दिनों में ही किताब मेरे हाथों में भी आ गयी. किताब के साथ ‘मास्क’ भी प्राप्त हुई.

इतवार की छुट्टी का फायदा उठाते हुए चार सौ से ऊपर पेज की किताब करीबन 14 घंटे में पढ़ गया. उपन्यास पढ़ने बैठा तो खाना-पीना छूट गया, क्योंकि कहानी अद्भुत ट्रेन यात्रा से शुरू होते हुए, कब और कैसे शिक्षकों की दास्ताँ बता जाती है, मालूम ही नहीं चलता. किताब पढ़ते-पढ़ते मैं स्कूल के दिनों में खो गया, फिर कॉलेज, फिर आगे, फिर आगे…ज्यों-ज्यों उपन्यास में घूमता गया मैं शिक्षकों की ज़िन्दगी में खोता गया कि यही तो हो रहा है, शिक्षकों के साथ- कैसे पैरेंट्स, स्टूडेंट्स के योजनाओं पर हाथ साफ़ करते हैं ? कैसे विद्यालय में शिक्षकों के बीच मतभेद होते हैं ? कैसे पत्रकार हमें डराते हैं ? कैसे कम उम्र में ही स्टूडेंट्स प्रेम व सेक्स का पाठ में ‘नादान’ से ‘योग्य’ हो जाते हैं ? कैसे वेतन के अभाव में शिक्षकों की ज़िन्दगी सूनापन लिए हो जाती है ? कैसे सरकार कम वेतन में सर्वाधिक काम शिक्षकों से करा लेती हैं ? कैसे महिला शिक्षिकाओं से भेदभाव होता है ? कैसे शिक्षकों में जातीय भेदभाव होता है ? कैसे दिव्यांग शिक्षकों का तबादला नहीं होता ? कैसे शिक्षक भूख व भय से मर रहे हैं ?

उपन्यास में कई और भी बातें जिक्र हैं, जो दिल के दर्द को मन तक ले गयी; चूँकि उपन्यास जीवनी के रूप में लिखा गया है, इसलिए हरेक पन्ना पढ़कर दिल कह उठता है- वाह !

जहाँ उपन्यास के नायक का जीवन शानदार झरोखे से भरे पड़े हैं, तो वहीँ लेखक ने कई नई बातें बतलाए हैं कि प्रेमचंद कवि भी थे, बिहार दिवस 22 मार्च नहीं है.

सच में, इस उपन्यास को 21 वीं सदी की ‘कालजयी’ किताब हम कह सकते हैं, क्योंकि कुछ किताबों की कहानी दुखांत ज़िन्दगी की दास्तां होती हैं, जिसे पढ़कर हम उनलोगों की भावनाओं का कद्र कर रहे होते हैं, जिसके बारे ‘सरकार’ ने चुप्पी साध ली है !