रश्मि सेलवाल
disaster in uttarakhand – रात के १२ बजे… बस में बैठे बाहर हो रही आफत की बारिश को देख जिंदगी और मौत के बीच एक छोटी सी चूक को महसूस करना कैसा होता है, ये उस वक्त KMOU की बस मे बैठकर हम सभी महसूस कर सकते थे।
इस बस में करीब ३० लोग थे,जो बस इस बारिश के थमने और घर पहुँचने की उम्मीद लगाए हुए थे,पिछले २४ घण्टो से। ऐसे ही ना जाने कितने लोग, इस कैची, खैरना रोड पर फँसे थे, पर कोई सुध लेने वाला नही। पास मे इतना बड़ा कैची धाम है, पर सिर्फ नाम का। क्या इस विशाल धाम मे हम सभी फँसे यात्रियों के लिए थोड़ी सी भी जगह नही थी?? जगह मांगने पर मंदिर का गेट बंद कर दिया जाता है,ये कहकर की अब यहाँ के सारे कमरे फुल हो चुके है।
क्या आपको लगता है कि बीच रोड मे २ रात गुजारने वाले इतने यात्री किसी अच्छे ख़ासे रूम मिलने की उम्मीद कर रहे होंगे??? बिल्कुल नही,बल्कि सभी को जरूरत थी एक सुरक्षित छत की, जो कि २ रातों से हमें नसीब नही हुई थी। रोड के बीचो- बीच २ दिन बस मे रहना कैसा महसूस कराता है,ये सब शब्दो में बयां कर पाना बहुत ही मुश्किल है। हमे जगह चाहिए थी, एक ऐसी जगह की जहाँ २दिन से टेढ़े पैर सीधे हो सके, जहाँ दो दिन से मन को कुरेदने वाला डर दूर हो सके। जहाँ हमे उम्मीद मिल सके। पर ऐसा कुछ हुआ नही,जबकि हो सकता था।
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बीती 18 तारीख को हम रोड ब्लाक होने की वजह से कैची धाम से करीब २०० मीटर आगे केमो बस मे फँसे थे। बाहर लगातार मौसम अपना क्रूर रूप दिखा रहा था। आसमान मे बादल गरजने की वो आवाज़ और मन मे बादल फटने की आशंका लगातार बनी हुई थी। और चारो और अंधेरे और डर का वो माहौल हमे कितना असुरक्षित महसूस करा रहा था, इसकी आप कल्पना भी नही कर सकते ।
बस मे कई सारी महिलाएं भी थी,पर आस पास कही कोई बाथरूम नही था, जहाँ जाया जा सके, सिवाय बारिश मे लतपथ हुए बीच रोड में बैठने के। मुझ जैसे ऐसे कई सारे लोग होंगे जिन्हे कुछ ना कुछ परेशानि जरूर रही होगी। पर हम सभी मजबूर थे। आलम ये था कि आस पास कही कोई दुकान नही खुली थी। सिवाय एक के। और उसके पास भी ऐसा कुछ नही था कि कुछ खाया जाए। इस समय मेरे पास रखे १ किलो सेब मुझे संजीवनी से प्रतीत हुए।
ये चुप चाप खाए जा सकते थे,पर ये वक्त स्वार्थी होने का बिल्कुल नही था,बल्कि एक दूसरे की मदद का था,तो थोड़ा बहुत सब मे बंट गया।
थोड़ी देर बाद हमारे पीछे रुकी एक गाड़ी से २ लोग आए।और कुछ चिप्स ,बिस्कुट, नमकींन हमे दे , इंसानियत की मिसाल दे गए। ये लोग पुणे से थे। और इनके पास खाने पीने का कुछ सामान पड़ा हुआ था। जिससे हम सभी ने रात गुजारी।
हमारी बस मे एक सर और थे जो सबकी मदद कर रहे थे, उनकी वजह से बस मे सबको मनोबल मिल रहा था। अभी हम ना आगे जा सकते थे,और ना ही पीछे । हमे बस सुबह का इंतज़ार था और इसी इंतज़ार मे एक लम्बी रात जैसे तैसे कटी।
आगे जारी………….
लेखिका रश्मि सेलवाल बागेश्वर महाविद्यालय में अध्यापन करती है साथ ही रेडियो इनाउंसर भी हैं।