Navratri special- मां कंडाई का निवास यह कांटेदार वृक्ष वर्षभर रहता है हरा भरा

ललित मोहन गहतोड़ी यहां भक्तों को माता रानी की अलौकिक शक्तियों से होता है सीधा साक्षात्कार चंपावत। जिले के लोहाघाट विकास खंड स्थित सुईं-बिशुंग की…

Navratri special The abode of Maa Kandai this thorny tree remains green throughout the year

ललित मोहन गहतोड़ी

यहां भक्तों को माता रानी की अलौकिक शक्तियों से होता है सीधा साक्षात्कार

चंपावत। जिले के लोहाघाट विकास खंड स्थित सुईं-बिशुंग की चार दयोली में शुमार प्रसिद्ध जगत जननी नवदुर्गा मां कंडा़ई का भव्य दरबार बिशुंग कर्णकरायत की पहाडी़ में घने देव वृक्ष देवदारों के मध्य में स्थित है। मान्यता है कि आज भी सच्चे मन से मंदिर पहुंचने वाले भक्तों को नवदुर्गा माँ कंडा़ई की अलौकिक शक्तियों से सीधा साक्षात्कार होता है. मंदिर की प्राकृतिक एवं नैसर्गिक सौंदर्यता के साथ इस पावन स्थल पर एकाग्र मन से क्षण मात्र ध्यान करने से ही मन आनन्दमय हो जाता है।

कालांतर से चली आ रही मान्यता के अनुसार मंदिर के एक छोटे से कांटेदार वृक्ष में जगत जननी नवदुर्गा मां कंडा़ई निवास करती हैंं। ग्रामीण बताते हैं कि मां कड़ाई के निवास इस वृक्ष की लंबाई जैसी पूर्व देखी गई ठीक वैसी आज भी है। मां कंडा़ई का यह वृक्ष वर्ष भर हरा-भरा रहता है जिसके दर्शन करने को वर्ष भर भक्तों की भीड़ लगी रहती है।

कालांतर से ही मंदिर में चैत्र मास व शारदीय नवरात्रि के प्रथम दिवस से भक्तों द्वारा मां कंडा़ई के दरबार में अपनी-अपनी मनोकामना को पूर्ण करने हेतु अखंड ज्योति जलाई जाती है। जो लगातार दशहरे के दिन तक पूर्ण रूप से जलती रहती है। इससे एक दिन पूर्व नवमी की रात्रि में देवी का विशेष जागरण किया जाता है। इस दौरान निसंतान महिलाओं द्वारा संतान की प्राप्ति हेतु देवी मां की आराधना की जाती है। बताया जाता है कि दयालु मां कड़ाई यहां भक्तों की भक्ति से प्रसन्न होकर स्वप्न में दर्शन देकर उनकी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं।

ठीक दशहरे के दिन बुड़चौंडा़, गलचौंडा़ से चार दयोली होते हुए देव-डांगर देवी-देवताओं के अस्त्र-शस्त्र हाथ में लेकर नंगे पांव मां कंडा़ई के दरबार तक पहुँचते हैं। जहां वैदिक मंत्रोच्चारण एवं विधि-विधान पूर्वक गोदान एवं हवन-यज्ञ के माध्यम से 33 कोटी देवी-देवताओं के आह्वान के साथ देव-डांगरों में समस्त देवी-देवता अवतरित होकर कच्चे दूध तथा कच्चे चावल की सैकडो़ं गालें खाते हुए अपने प्रिय भक्तों को आशीर्वाद प्रदान करते हैं।

यहां वर्ष भर मंदिर के पुजारी बहुत ही कठिन तप से होकर गुजरते हैं। इसके लिए पुजारी वर्ष भर तक ब्रह्मचर्य जीवन का पालन कर नंगे पांव रहते हैं। यहां विशेष पर्व जैसे पूर्णिमा, संक्रान्ति एवं अमावास्या को मंदिर के पुजारी द्वारा बीस गांव बिशुंग एवं पांच गांव सुईं के प्रत्येक परिवारों से दूधा-अक्षत (दूध, चावल, घी, आदि) एकत्रित कर नवदुर्गा मां कंडा़ई को भोग लगाया जाता है। जिसे “घर-घर की दूधा-अक्षत, घर-घर की पूजा” का रूप दिया गया है।

देवी-देवताओं की लगती है न्याय गद्दी
मां कंड़ाई मंदिर में नवमी की मध्य रात्रि में मंदिर के पुजारी द्वारा मां भगवती तथा बीस गाँव बिशुंग के बुड़चौंडा़ एवं पांच गांव सुईं के गलचौंडा़ तक के समस्त देवी-देवताओं की न्यायिक गद्दी लगाई जाती है। जिसमें समस्त देवी-देवता आराध्य देव-डांगरों के शरीर में अवतरित होकर भक्तों को आशीर्वाद देते हैं। इस दौरान दूर दूराज से आए सैकडो़ं भक्तों द्वारा माता की न्यायिक गद्दी में अपनी सदियों पुरानी देव, पितृ एवं अन्य किसी भी प्रकार की पीडा़ अथवा समस्याओं के निराकरण हेतु सवा मुट्ठी चावल(खरीद) के रूप में डाले जाते हैं। न्यायिक गद्दी में माता रानी स्वतः ही साक्षात्कार
कर बारी-बारी से समस्त भक्तों की पीडा़ का निराकरण करती है।

मां कड़ाई की महिमा यह भी है कि देवी-देवता, पितृ और पुश्त आदि से संबंधित जो फैसला कहीं हल नहीं हो पाता है वह फैसला यहां आसानी से हल हो जाता है। कुमांउनी बोली में एक कहावत जो आज भी काफी प्रचलित है। वह यह कि “सुंईं-बिशुंग का देवताओं में कैकी औतरै नै भै” अर्थात यहाँ की अद्भुत चमत्कारी शक्तियों को देखते हुए सुईं-बिशुंग के देवी-देवताओं में कोई भी बाहरी असाधारण शक्ति यहां अवतरित होने का साहस नहीं जुटा सकती है।