ghughuti tyar: कव्वों का आहवान करने वाला अनोखा त्यौहार

उत्तरा न्यूज डेस्क उत्तराखण्ड अपने अनोखे रीति रिवाजों और त्यौहारों के लिये जाना जाता है। वर्ष भर ghughuti tyar त्यौहार उत्तराखण्डी समाज की विशिष्ट पहचान…

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उत्तरा न्यूज डेस्क
उत्तराखण्ड अपने अनोखे रीति रिवाजों और त्यौहारों के लिये जाना जाता है। वर्ष भर ghughuti tyar
त्यौहार उत्तराखण्डी समाज की विशिष्ट पहचान है। कुमाऊं इलाके में माघ माह की शुरूवात में मनाये जाने वाला त्यौहार ghughuti tyar (त्यौहार) भी इसमें से एक है।

यूं कहे तो दीपावली के बाद त्यौहार बंद से हो जाता है इसके बाद सूर्य के उत्तरायण ghughuti tyar में प्रवेश करने के दिन मनाया जाने वाला यह घुघतिया त्यार त्यौहारों की श्रंखला लेकर आता है। इसके बाद बंसत पंचमी से इसमें और तेजी आ जाती है जिसके बाद होली के त्यौहार की लोगों की बड़ी बेसब्री से प्रतीक्षा रहती है। लेकिन इस समय हम चर्चा ghughuti tyar की ही करेगें।

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ghughuti tyar
का मुख्य आकर्षण नन्हे मुन्ने बच्चों द्वारा कौवों को अलसुबह अपने अपने घरों में खाने के लिये आमंत्रित करना होता है। माघ मास के पहले दिन सुबह घरों में दाल, चाल, पूरी, पकवान बनाये जाते है। और सबसे पहले एक बरतन में कौवे के लिये खाना रखा जाता है।

शाम गुड़ के पानी में आटें को गूंथने के बाद फिर सि​लसिला शुरू होता है कौवों के लिये घुघते बनाने का। घुघुते की विशेष आकृति बनाकर तेल में तली जाती है। इसके साथ ही अलग अलग पकवान जैसे खजूरे, तलवार, डमरू आदि आ​कृतिया बनाकर हल्की आंच में तली जाती है। पहले से भिगोकर रखी मॉस ( उड़द ) की दाल को सिलबट्टे में ​पीसा जाता है और उससे बड़ा (एक कुमाऊंनी पकवान) बनाया जाता है।

छोटे बच्चें इस ghughuti tyar त्यौहार की विशेष प्रतीक्षा करते हैंं क्योंकि उन्हे इन्ही घुघते, खजूरें, तलवार,बड़े, डमरू आदि को गछकर माला तैयार करनी होती है माला के बीच में नारंगी ( संतरे ) का दाना गछाया जाता है। मूंगफली , तिलगटटे को माला में गछाया जाता है। बच्चों में अपनी माला को सबसे बड़ी ​दिखाने के लिये बड़ा उत्साह रहता है। अगली सुबह बड़ा, खजूर, घुघुत और पहले दिन की सुबह से रखा कौवे का भोजन घर की छत पर ऐसी जगह दिख जाता है जहां से कौवा इसके आसानी से देखकर खा सके। इसके बाद बच्चें​ बोल बोलकर कौवों को अपने घर आकर उसके लिये रखे भोजन को खाने के लिये आमंत्रित करते हैं।

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घुघतिया त्यार ghughuti tyar को मनाये जाने के ​पीछे कई लौकोक्तिया प्रचलित है। कहा जाता है कि यह पंरपरा जब कुमाऊ में चन्द्र वंश के राजाओं के समय से शुरू हुई। चंंद राजा कल्याण चंद की कोई संतान नहीं थी और उत्तराधिकारी ना होने से मंत्री का सोचना था कि राजा के बाद राज्य उसे ही मिलेगा। एक बार राजा कल्याण चंद अपनी पत्नी के साथ बाघनाथ मंदिर में दर्शन के लिये गया और उनसे औलाद की प्रार्थना की और कुछ समय बाद उन्हे पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई।

इस बालक का नाम निर्भय चंद रखा गया। उसकी मां उसे प्यार से घुघुति के नाम से पुकारती थी। घुघुति के गले में एक मोती की माला होती थी और उसमें घुंघरू लगे हुए होते थे जिस में घुगरु लगे हुए थे| बालक को भी माला से बड़ा प्यार था। यदि बालक कभी जिद करता तो मां उसे डराने के लिये कहती ​कि यदि वह ज्यादा जिद करेगा तो माला कौवें को दे दूंगी। और “काले कौवा काले घुघुति माला खाले” कहकर उसे डराती थी। कई बार यह सुनकर कौवा वहा आ जाता और बालक घुघुति अपनी जिद छोड़ देता था। कौवें के आने पर घुघुती की मां कौवों को खाने की कोई चीज दे देती थी। और इसी तरह बार बार कौवों के आने से बालक की कौवें के साथ दोस्ती सी हो गयी थी।


इधर राज्य ​हथियानें का मंसूबा पाले राजा का मंत्री किसी
भी तरह से बालक घुघु​ति को मारने का षडयंत्र रचने लगा। उसने एक दिन जब बालक घुघुति अकेला खेल रहा था जो मंत्री अपने साथियों के साथ उसे वहां से उठाकर जंगल में ले गया। घुघुति ghughuti tyar को जंगल की ओर ले जाते हुए एक कौवें ने देख लिया और वह जोर से कांव कांव करने लगा। उसकी आवाज सुनते ही घुघुति जोर से रोते हुए अपनी माला उतारकर कौवें को दिखाने लगा। इसी बीच वहां पर कई सारे कौवें इकठ्ठा हो गये और उनके आसपास मडंराने लगे और एक कौवा माला छीनकर वहा से चला गया। और कौवों ने एक साथ मंत्री और उसके साथियों पर चौंच और पंजों से हमला कर दिया। इससे घबराये मंत्री और उसके साथी वहा से भाग निकले। इधर घुघती वहां अकेला ही रह गया और एक पेड़ के नीचे बैठ गया। सभी कौवे घुघुति की सुरक्षा के लिये उसी पेड़ के आसपास बैठ गये।

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इसी बीच हार लेकर निकला कौवा महल के पास चला गया और एक पेड़ पर माला टांगकर जोर जोर से कांव कांव करने लगा। कांव कांव की आवाज सुनकर जब लोगों की नजर ​कौवे पर पड़ी तो तो वह हार उन्हे दिखाई दी। इसके बाद लोगों ने माला घुघुति की मां को दिखाई। मां ने हार को पहचान लिया और घुघिति को वहां ना पाकर परेशान हो गई। इसी बीच कौवा चिल्लाते हुए एक डाल से दूसरे डाल में मडराने लगा। लोगों को समझ में आया कि कौवा घुघति के बारे में कुछ जानता है। इसके बाद कौवा वहा से उड़ गया। राजा और उसके सैनिक उसके पीछे पीछे गये तो कौवा एक पेड़ पर जाकर बैठ गया। उसी पेड़ के नीचे घुघुति सोया हुआ था।


राजा ने देखा कि पेड़ के नीचे उसका बेटा सोया हुआ है। वह अपने बेटे को उठाकर महल में ले गया। घुघुति को सकुशल पाकर मां बड़ी खुश हुई और कहने लगी कि अगर यह माला नहीं होती तो घुघुति जिन्दा नहीं रहता। इसक बाद राजा ने मंत्री और उसके साथियों को मृत्युदंड की सजा सुनाई। बालक घुघुति के मिलने पर उसकी माँ ने बहुत सारे पकवान बनाकर घुघुति से पकवान कौवों को बुलाकर खिलाने को कहा। घुघुति ने अपने प्राण बचाने वाले कौवों को बुलाकर उन्हे पकवान खिलाये। कहते है कि यह बात धीरे धीरे पूरें कुमाऊ में फैल गई और इसने घुघति त्यार का रूप ले लिया।
बच्चे मकर संक्रांति के दिन माला अपने गले में डाल कर
कौवे को बुलाते हैं और कहते हैं:-

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काले कौव्वा काले घुघते की माला खाले
लै कव्वा मैचुलों , भोल बटी आलो तेर गल थेचुलों

ले कव्वा तलवार , हमन के दे भलि पुरी परिवार
लै कव्वा
बड़ हमन के दै स्यून घड़

लै कावा भात, में कै दे सुनक थात
लै कावा लगड़, में कै दे भैबनों दगड
“लै कावा क्वे, में कै दे भली भली ज्वे

बदलते समय में कौवे मुश्किल से ही आते है और कौवों के लिये पकवान की दावत अब बंदर उड़ाने लगे है।

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