यहां है देश का दूसरा सूर्यमंदिर, देवभूमि के इस मंदिर में इस तिथि को लगता है मेला

अल्मोड़ा:- अल्मोड़ा नगर से करीब 16 किमी दूर स्थित कटारमल सूर्य मन्दिर भारतवर्ष का प्राचीनतम सूर्य मन्दिरहै। यह पूर्वाभिमुखी है तथा इसी मंदिर के नाम पर कटारमल गांव है,…

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photo -uttranews

अल्मोड़ा:- अल्मोड़ा नगर से करीब 16 किमी दूर स्थित कटारमल सूर्य मन्दिर भारतवर्ष का प्राचीनतम सूर्य मन्दिरहै। यह पूर्वाभिमुखी है तथा इसी मंदिर के नाम पर कटारमल गांव है, दस्तावेजों में पहले इसका नाम अधेली सुनार नामक गॉंव था | अब यहां तक सड़क पहुंच गई है और इससे सांस्कृतिक पर्यटन को काफी बल मिला है |
इसका निर्माण कत्यूरी राजवंश के तत्कालीन शासक कटारमल के द्वारा छठीं से नवीं शताब्दी में हुआ था। यह कुमांऊ के विशालतम ऊँचे मन्दिरों में से एक व उत्तर भारत में विलक्षण स्थापत्य एवम् शिल्प कला का बेजोड़ उदाहरण है तथा समुद्र सतह से लगभग 2116 मीटर की ऊँचाई पर पर्वत पर स्थित है।यहां पहुचने के लिए पैदल मार्ग कोसी कस्बे से शुरु होता है जबकि वाहन से जाने वाली करीब चार किमी दूरी तय कर जीबी पंत संस्थान के समीप रानीखेत रोड से जुड़े मार्ग से यहां पहुंच सकते हैं |

कटारमल सूर्य मन्दिर का निर्माण मध्ययुगीन कत्यूरी राजवंश के शासक कटारमल के द्वारा छठीं से नवीं शताब्दी में हुआ था।कटारमल मंदिर एक शानदार सूर्य मंदिर है जिसे बारा आदित्य मंदिर भी कहा जाता है।कटारमल अल्मोड़ा से लगभग 16 किलोमीटर दूर स्थित है और यह 2,116 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। पैदल चलने पर कोसी नदी के पास हवालबाग और मटेला को पार करने के लिए लगभग तीन किलोमीटर का पैदल सफर करना पड़ता है। कटारमल मंदिर को कुमाऊं में एकमात्र सूर्य मंदिर होने का गौरव प्राप्त है।मुख्य मन्दिर के आस-पास 45 छोटे-बड़े मन्दिरों का समूह भी बेजोड़ है। मुख्य मन्दिर की संरचना त्रिरथ है और वर्गाकार गर्भगृह के साथ वक्ररेखी शिखर सहित निर्मित है। मंदिर के गर्भगृह का प्रवेश द्वार उच्‍चकोटि की काष्ठ कला से बना था, जो अब कुछ अन्य अवशेषों के साथ नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय में रखवा दिया गया है।
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यह है मंदिर से जुड़ी कहानी 

पौराणिक उल्लेखों के अनुसार चली जनस्रुतियों के अनुसार कहते हैं कि सतयुग में उत्तराखण्ड की कन्दराओं में जब ऋषि-मुनियों पर धर्म पर आस्‍था ना रखने वाले एक असुर ने अत्याचार किये थे। उस समय द्रोणगिरी कषायपर्वत और कंजार पर्वत के ऋषि मुनियों ने कौशिकी जो अब कोसी नदी कहलाती है के तट पर आकर सूर्य देव की स्तुति की थी। तब ऋषि मुनियों की प्रार्थना से प्रसन्न होकर उन्‍होंने अपने दिव्य तेज को एक वटशिला में स्थापित कर दिया। इसी वटशिला पर कत्यूरी राजवंश के शासक कटारमल ने बड़ादित्य नामक तीर्थ स्थान के रूप में इस सूर्य मन्दिर का निर्माण करवाया, जो अब कटारमल सूर्य मन्दिर के नाम से प्रसिद्ध है। अब हर साल पूस माह के अंतिम दिन यहां सूर्य पर्व के रूप में कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है | इस बार भी रविवार को यहां भव्य हवन व पूजा का आयोजन होगा | सुबह 10 बजे से कार्यक्रम शुरू हो जाएगा |
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इस बार यहां के लिए लगेगी सिटी बस

कटारमल आने जाने वाले श्रद्धालुओं के लिए रविवार को अल्मोड़ा से सिटी बस का संचालन होगा यह बस अल्मोड़ा से कटारमल तक यात्रियों को लाने ले जाने का काम करेगी | शाम तक इस बस का संचालन किया जाएगा |