बड़ी खबर : क्यों चर्चाओं में है सोबन सिंह जीना परिसर का विधि संकाय विभाग

अल्मोड़ा। अपनी लचर कार्यप्रणाली के चलते कुमाऊॅ विश्वविद्यालय सदैव चर्चाओं में रहा है। फर्जी मार्गशीट प्रकरण की सनसनी के बाद इन दिनों अल्मोड़ा विधि संकाय…

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अल्मोड़ा। अपनी लचर कार्यप्रणाली के चलते कुमाऊॅ विश्वविद्यालय सदैव चर्चाओं में रहा है। फर्जी मार्गशीट प्रकरण की सनसनी के बाद इन दिनों अल्मोड़ा विधि संकाय में नियम विरूद्ध तरीके से छात्रों को प्रवेश का मामला सुर्खियों में नजर आ रहा है। अल्मोड़ा स्थित एसएसजे परिसर के विधि संकाय में विधि की शिक्षा अर्जित करने हर वर्ष सैकड़ों छात्र आते हैं। कम फीस और आसपास कहीं विधि की पढ़ाई न होने के कारण हर साल यहां सीटों को लेकर मारा मारी रहती है। नियमित कोर्स होने के कारण अनेकों बार दूरस्थ शिक्षा लेने वाले छात्र यहां प्रवेश लेने से वंचित भी रहते हैं। बीते सालों में उपस्थिति पूर्ण न करने पर यहां अनेक छात्रों को परीक्षा में बैठने से वंचित भी रहना पड़ा है। ज्ञातव्य है कि विधि पाठ्यक्रम नियमित है और इसमें छात्र को नियमित कक्षाओं में 75 प्रतिशत उपस्थिति देना अनिवार्य है। इन दिनों सूचना अधिकार के तहत जब कुछ लोगों ने जानना चाहा कि यहां प्रवेश की स्थिति क्या है तो हैरानी करने वाली जानकारियां मिल रही है। एक मामले में ज्ञात हुआ कि कोसी कटारमल गोविंद बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण एवं सतत विकास संस्थान के प्रशासनिक अधिकारी अनिल कुमार यादव तमाम नियम कानूनों को ताक में रखकर यहां से नियमित विधि की शिक्षा ले रहे हैं। इसके अलावा अनिल कुमार यादव ने एक प्रवेश के समय स्वघोषित पत्र में यह लिखा है कि वह किसी संस्थान में कार्यरत नही है। और उसके साथ ही नीचे छोटे अक्षरों में एनओसी अटैच्ड लिखा गया है। यदि एनओसी अटैच ही करनी थी तो फिर किसी संस्थान में कार्य नही करने की घोषणा वाले कालॅम को काटा जाना चाहिये था।  इससे एनओसी और किसी सरकारी,गैर सरकारी संस्थान में कार्य ना करने की सूचना वाले पत्र में साफ तौर पर विरोधाभास दिखाई दे रहा है। हैरानी वाली बात यह है कि कुमांऊ विश्वविदयालय के विधि विभाग की प्रवेश समिति ने इस पर गौर  नही किया। 

fake permission

                           छात्र द्वारा दिया गया घोषणा पत्र 

संस्थान की ओर से उन्हें एक हास्याप्रद अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी किया गया है जिसमें निदेशक की ओर से कहा गया है कि उन्हें नियमित विधि की पढ़ाई करने की अनुमति नहीं दी जा सकती। अलबत्ता वह अवकाश से इसे मैनेज कर पढ़ाई कर सकते है। अब यह मैनेज शब्द का मतलब क्या है यह आगे आने वाले समय में हम कुछ और पड़ताल के साथ उत्तरा न्यूज में एनओसी के पत्र के साथ प्रकाशित करेगें।

हैरानी की बात है कि एक केन्द्रीय संस्थान में नौकरी कर रहे प्रशासनिक अधिकारी ने चार सैमेस्टर की परीक्षा पास कर ली है। और इस समय वह पांचवे सेमेस्टर के छात्र है। उत्तरा न्यूज के पास उपलब्ध जानकारी के अनुसार पांचवे सेमेस्टर में 12 दिन उपस्थित होने के बावजूद उक्त छात्र को परीक्षा देने की अनुमति दे दी गई। जबकि उक्त छात्र द्वारा विश्व विद्यालय अनुदान आयोग ( यूजीसी ) के न्यूनतम 75 प्रतिशत उपस्थिति के मानक को पूरा नही किया गया। इस बारे में पूछे जाने पर एसएसजे परिसर अल्मोड़ा के विधि संकाय के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर डी के भट्ट ने संसाधनों की कमी को इसका कारण बतातेे हुए कहा कि संसाधनो की कमी के कारण पढ़ाई यह स्थिति आती है। और विद्यार्थियों के भविष्य को देखते हुए परीक्षा में बैठने की अनुमति दी गई थी।

बताते चले कि इसी प्रकार के मामले में विधि विभाग कई विद्यार्थियों को न्यूनतम उपस्थिति ना होने पर उन्हे परीक्षा में शामिल होने से रोक चुका है। अब सवाल यह है कि कुछ पर यह मेहरबानी क्यों की जा रही है। इस बावत सूचना मांगने वालों की ओर से बार काउंसिल आफ इंडिया में भी शिकायत की गई है। उत्तरा न्यूज के पास उपलब्ध जानकारी के अनुसार कटारमल स्थित इसी संस्थान की एक महिला कार्मिक भी इसी तरह से विधि की विद्यार्थी के रूप में अध्ययनरत है।

एक ओर विधि संकाय द्वारा इस बावत् संपूर्ण जानकारी नहीं दी जा रही है वहीं दूसरी ओर स्वयं पर्यावरण संस्थान के निदेशक की ओर से भी इस मामले का गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है। राष्ट्रीय स्तर की मान्यता मिले इस बड़े संस्थान की प्रशासनिक जिम्मेदारियों को निभाने का दावा करने वाले प्रशासनिक अधिकारी अनिल कुमार यादव की कार्यप्रणाली को लेकर अनेक प्रकार के संदेह पैदा हो रहे हैं। वही इस प्रकरण के जोर पकड़ने से एसएसजे परिसर के विधि विभाग की कार्यणाली भी संदेह के घेरे में आ गई है। ज्ञात हो कि परिसर में अनेकों छात्र हर साल 75 प्रतिशत उपस्थिति न दे पाने की स्थिति में परीक्षा से वंचित रहे हैं। छात्रों में इस घटना से खासा रोष व्याप्त है। विश्वविद्यालय के विधि संकाय और सूचना अधिकार से जुड़े अधिकारियों में इस मामले को लेकर दुविधा की स्थिति है। अनिल कुमार यादव को बचाने की मुद्रा में वे यहां तक बयान दे रहे हैं कि उन्हें 10 से 5 प्रतिशत अपनी ओर से उपस्थिति में छूट देने का अधिकार है। मामले की यदि गंभीरता से जाॅच की जाए तो संभव है कि यहां अनेक ऐसे प्रकरणों में विभाग की संलिप्तता नजर आ सकती है । इन दिनों यह मामला प्रधानमंत्री कार्यालय से लेकर राज्यपाल कार्यालय तक शिकायतों के रूप में उठ रहा है और आने वाले दिनों में विधि संकाय द्वारा कार्यवाही न करने पर मामला तूल पकड़ सकता है।

सूचना मांगने वाले का मोबाइल नंबर तक लीक कर दिया विश्वविद्यालय प्रशासन ने

अल्मोड़ा। एसएसजे परिसर के विधि विभाग में हमारे एक वरिष्ठ सहयोगी ने सूचना के अधिकार के अंतर्गत एक सूचना मांगी थी। विभाग हमे मांगी गई सूचना तो पूरी उपलब्ध नही करा पाया अलबत्ता जो कुछ हुआ वह बड़ा दिलचस्प है।
सूचना का ​अधिकार अधिनियम के अंतर्गत सूचना मांगने वाले हमारे वरिष्ठ सहयोगी के मोबाईल में 29 दिसंबर को सुबह 9 बजकर 26 मिनट पर एक कॉल आया। कॉल करने वाले व्यक्ति ने अपने को अनिल कुमार यादव बताते हुए हमारे वरिष्ठ सहयोगी से मिलने की इच्छा जाहिर की। और जब वह उनसे मिले तो उस आरटीआई के संबध में जानकारी मांगने लगे। ​अब सवाल इस बात का है कि हमारे सहयोगी द्वारा आरटीआई से सूचना मांगे जाने की जानकारी उन्हे कैसे मिली। यह साफ तौर पर सूचना के अधिकार अधिनियम की मूल भावना के साथ खिलवाड़ है। स्पष्ट तौर पर हमे लगता है कि यह सूचना कुमाऊ विश्वविदयालय के स्तर पर लीक हुई होगी और वही से फोन नंबर भी चला गया होगा क्योंकि इस घटना से कुछ दिन पूर्व ही हमारे सहयोगी ने ​विधि विभाग द्वारा सूचना अपूर्ण दिये जाने के खिलाफ अपीलीय अधिकारी को पत्र दिया है और पहली बार उस पत्र में मोबाइल नंबर भी अंकित किया गया है।

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