श्रद्धा व भक्ति का केन्द्र है झाकर का सैम मन्दिर

हेमंत भट्ट ” कैलाश ” उत्तराखण्ड में देवालयों व शक्तिपाठों का अम्बार है ।धार्मिक आस्थाओं को रेखांकित करते  मन्दिर सदियों से श्रद्धा की देहरी के…

Jhakar's Sam temple is the center of reverence and devotion

हेमंत भट्ट ” कैलाश ”

उत्तराखण्ड में देवालयों व शक्तिपाठों का अम्बार है ।धार्मिक आस्थाओं को रेखांकित करते  मन्दिर सदियों से श्रद्धा की देहरी के रूप में पूज्यनीय रहे हैं। ऐसा ही एक पूजित पावन स्थल है झांकर का सैम मन्दिर। यहाँ सैम को शिव के अंशावतार के रूप में पूजा जाता है। इस स्थान पर सैम स्वंयभू लिंग के रूप में प्रकट हुए है और भी अनेक स्थानों पर सैम ईष्ट देव के रूप में पूजित हैं और ये देवताओं के मामा कहे जाते हैं।

उत्तराखण्ड में सैम देवता के अनेकों मंदिर है। यंहा की देव गाथाओं व श्रद्धा की भावनाओ  में सैम देवता सर्वोपरि देवता हैं। अनेक स्थानों पर यह स्वयंभू देवता के रुप में प्रकट हुए है। इनकी स्तुति परम फलदायी मानी जाती है। झांकर में स्थित सैम भी स्वयंभू देवता के रुप में पूजित हैं। कहा जाता है कि इस देव दरबार में जो भी भक्तजन सच्चे मन से आराधना के श्रद्धा पुष्प अर्पित करता है वह कल्याण का भागी बनता है। उत्तराखण्ड के इतिहास में इस देवता को सभी देवताओं का मामा व बाबा भोलेनाथ अर्थात् भगवान शिव का साक्षात् अंशावतार माना जाता है। मन को निर्मल गति प्रदान करने व अपने भक्ततो को पूर्ण न्याय प्रदान करना इस देवता की नियति मानी जाती है।

जनपद अल्मोड़ा मुख्यालय से 38 किमी0 की दूरी पर  स्थित सैम का यह दरबार विकास खण्ड धौलादेवी के अर्न्तगत आता है। वर्ष भर यहां श्रद्धालुओं का आवागमन लगा रहता हैं। बांज-बुराश व देवदार के घने वृक्षों के मध्य स्थित होने के कारण बरबस ही लोग यहां खींचे चले आते हैं। इस स्थान पर भगवान शिव ने सैम के अंशावतार के रूप में कब अपनी लीला प्रारम्भ की इस बात का कोई स्पष्ट प्रमाण नही मिलता है। लेकिन जनश्रुति में ऐसी मान्यता है कि जब भगवान शिव जागेश्वर में परम ज्योर्तिलिंग जागनाथ के रूप में प्रकट हुए उसी दौरान उन्होने यहां भी सैम के रूप में  अंशावतार लिया। इस अवतार का प्रयोजन भी लोक कल्याण ही था। एक अन्य कथा के अनुसार कहा जाता हैं। कि आठवीं सदी के आसपास जब जागेश्वर धाम में मन्दिर निर्माण का कार्य चल रहा था तो मन्दिर निर्माण में अचानक अवरोध आने लगा और वे बनते ही धराशायी होने लगे वर्षो तक यह सिलसिला चलता रहा, आखिरकार ब्राह्मण ज्योतिषियों व योगियों की सभा बैठी।

विभिन्न उपायों से इस बात का पता चला कि जागेश्वर की दक्षिण दिशा से आने वाले शिवगण ही यह उत्पात इसलिए मचाते हैं कि वे सनातन शिव को बसुधंरा में खुले आकाश के नीचे देखना चाहते थे। बाद में अलौकिक उपाय के जरिये शिव महिमा से भक्तजनों की इच्छानुसार व गणों को शान्त करने के लिए शिव सैम रूप में यहां स्वयंभू लिंग के रूप में अवतरित हुए और गणों की शान्ति के लिए पास में ही क्षेत्रपाल ने भी डेरा डाला जहां पर बलि प्रथा शुरू हुई किन्तु परम सात्विक दरबार होने के कारण सैम देव को बलि नही दी जाती है, बल्कि यहां पर होने वाला बलिदान भगवती के गणों को अर्पित किया जाता है।

इस मंदिर में पूजा अर्चना कार्य सदियों से पांडे व भट्ट लोग कर रहे हैं। मंदिर में पुजारी का कार्य कर रहे पाण्डेय वंशज अण्डोली गाँव के निवासी बताते हैं कि झांकर के सैम देवता के बारे में अनेकों कथाऐं हैं। समय समय पर इनकी अद्भुत लीलाओ ने  अनेक कथाओं ने जन्म लिया जिनमें से एक कथा इस प्रकार हैं। कहा जाता है कि आसपास के गाँव में नीरा जैत नाम की एक महिला थी जो काफी दुःखी थी ,व्याकुलता से वह झकझोर हो उठी और हाथ में पकड़ी दराती से उद्वेलित होकर भूमि पर चोट मारने लगी तभी भूमि में अचानक खून से लथपथ एक लिंग प्रकट हुआ। खून की धारा देखकर वो घबरा उठी। तभी लिंग से आवाज आई घबराओ नहीं, पास गांव में जाकर नौनी (मक्खन) लेकर आओ तथा इसका लेपन करो। तभी खून बन्द होगा और तभी तुम्हारा भी कल्याण होगा। मंदिर पर स्थित लिंग पर आज भी यह निशान है।

एक अन्य प्रचलित कथन के अनुसार दक्ष प्रजापति के यंत्र का विध्वंस करने के बाद सती के आत्मदाह से दुःखी यंत्र की भस्म को सारे शरीर पर मल कर शिव ने यहीं के घनघोर जंगलों में हजारों वर्षों तक तपस्या की जिस कारण भी आध्यात्मिक दृष्टि से यह मंदिर क्षेत्र काफी महत्वपूर्ण है। सांसारिक झंझटों से निराश व अन्याय से पीड़ित लोगों के लिए *झांकर सैम का दरबार वरदान स्वरुप कहा गया है। पर्यटन की दृष्टि से भी यह स्थान काफी मनमोहक व महत्वपूर्ण है आस-पास के गांवों के श्रद्धालु व भक्तजनों का प्रातःकाल से ही मंदिर में तांता लगना शुरू हो जाता है।

परंपरा के अनुसार सर्वप्रथम ‘‘सैम ज्यू’’ को भोग लगा कर प्रसाद वितरित किया जाता है। इस दरबार में अखण्ड ज्योति प्रज्जवलित रहती है। जिसके दर्शन मात्र से अपार पुण्य की प्राप्ति होती है, ऐसा विश्वास किया जाता है। कल्याण करना ही सैम देवता का कार्य है। सैम के स्वयंभू लिंग अनेक स्थानों में मौजूद हैं जिनमें झांकर सैम के अलावा धौलादेवी, विकास खण्ड में ही तलचौना गांव से आगे 4 किमी0 बियाबान जंगल में भी सैम देवता का फुट लिंग है जिसके दर्शन को भी लोग यहां आते हैं। यहां पर मांगी गयी मनौती फलदायी होती है। यहां पर सैम देवता पिण्डी के रूप विराजमान हैं। उत्तराखण्ड की धरती में सैम का सभी देवताओं के साथ मामा का रिश्ता है, अनेक स्थानों में स्थित सैम के पिण्डी झांकर सैम का ही स्वरूप माना जाता है।

झांकर सैम मन्दिर में श्रीमद् भागवत महापुराण ज्ञान यज्ञ 5 जून से झाकर सैम  के प्रसिद्ध सैम दरबार में आगामी पाँच जून से श्रीमद्भागवत कथा का आयोंजन होनें जा रहा है।भगवान श्री हरि को समर्पित कथा आयोजन को लेकर क्षेंत्र में जबरदस्त उत्साह है। कथावाचक,भागवताचार्य व्यास प० श्री बंसत बल्लभ त्रिपाठी अपनी सुधामयवाणी से भागवत कथा वाचेगें।  प्रतिदिन दोपहर एक बजे से साढ़े चार बजे तक नित्यकथा प्रवचन के पश्चात् भजन संध्या का आयाेजन होगा, तथा बारह जून को यज्ञ पूर्णाहुति के पश्चात् भजन कीर्तन का आयोजन होगा। कथा का पारायण 11 जून को होगा।