Govind Ballabh Pant National Institute of Himalayan Environment did a massive plantation program in Katarmal
अल्मोड़ा, 19 जुलाई 2022- गोविन्द बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान, अल्मोड़ा द्वारा ’’उत्तराखण्ड लोक पर्व हरेला’ के उपलक्ष में ग्राम कटारमल, हवालबाग ब्लॉक में एक दिवसीय कार्यक्रम का शुभारम्भ डॉ आईडी भट्ट केन्द्र प्रमुख ’’जैव विविधता संरक्षण एवं प्रबंधन केन्द्र द्वारा किया गया।
संस्थान के निदेशक प्रो. सुनील नौटियाल के दिशा-निर्देशन में उक्त कार्यक्रम का आयोजन किया गया।
जिसका मुख्य उद्देश्य ’हरेला’ पर्व पर जन समूह से मिलजुलकर प्रकृति से लगाव पैदा करना एवं भविष्य हेतु प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण हेतु प्रयत्नशील बनाना है।
इसी क्रम में डा. जीसीएस नेगी ने ग्राम प्रधान बलवीर सिंह, निदेशक प्रो0 सुनील नौटियाल, पूर्व प्रधान गोपाल सिंह बिष्ट एवं सभी प्रतिभागियों का अभिनन्दन किया। डा0 नेगी ने बताया कि संस्थान गत 20 र्वाो से कटारमल गाॅव में विभिन्न जागरूकता कार्यक्रम, पौध रोपण, विज्ञान सम्बन्धी विषयों की जानकारी देता रहा है। इसी क्रम में ’हरेला’ पर्व के उपलक्ष्य में वृक्षा-रोपण कार्यक्रम का आयोजन किया गया। साथ ही डा0 नेगी द्वारा पुस्तक ’कटारमल ग्राम की जैव-विविधता’ के विषय में सभी प्रतिभागियों को अवगत कराया जिसमें कि लगभग 692 प्रजातियाॅ (35 जड़ी-बूटी, 108 पेड़ प्रजाति, 116 छोटे पादप, 106 तितलीयां, 84 कीट) आदि क्षेत्रीय जानकारी को संग्रहित किया गया है।
समाज सेवी जितेन्द्र यादव ने सूर्य-मन्दिर कटारमल, ग्राम क्षेत्र के आस-पास कूड़ा करकट प्रबंधन के विषय पर जानकारी दी तथा उन्होने बताया कि प्लास्टिक कूडा प्रंबधन को घरों से ही व्यवस्थित करने की आवश्यकता है ताकि यह आसपास न फैले एवं नदियाॅ, जलस्रोत आदि स्वच्छ रहें।
श्री बलबीर सिंह ग्राम प्रधान ने ‘हरेला पर्व के अवसर पर स्वागत संबोधन में भविष्य में पर्यावरण संस्थान, अल्मोड़ा को हर सम्भव सहयोग देने का आश्वासन दिया।
उन्होनें बताया कि क्षेत्र विकास हेतु जन-सहयोग द्वारा हम अपने क्षेत्र, राज्य एवं देश का विकास कर सकते हैं। डा0 बलबीर ने संस्थान के विविध बहुऔषधीय वृक्षो गुडहल, तेजपात, कनेर, बाॅज आदि के रोपण पर बताया कि इस प्रकार की पहल क्षेत्र में जल संरक्षण, पक्षियों के आवास को संरक्षित करने में सहायक सिद्ध होगें।
प्रो0 सुनील नौटियाल निदेशक द्वारा ’हरेला’ पर्व की विशेषताओं के विषय में सभी प्रतिभागियों को बताया । उन्होने हरेला पर्व को पारम्परिक संस्कृति, ज्ञान-विज्ञान से जोड़कर भविष्य में पर्यावरण को संरक्षित करने की बात कही।
प्रो0 नौटियाल ने बताया कि हरेला दिवस से पूर्व सात अनाज को नौ दिन पूर्व बोया जाता है फिर हरेला दिवस पर पूजन करके काटा जाता है एवं आर्शीवाद के रूप में सभी को बाॅटा जाता है। हरेला द्वारा कृषि संरक्षण संम्बन्धित है जिसमें पारम्परिक अनाज को संरक्षित किया जाता हैं कृषि की जैव विविधता को बढ़ाने एवं जंगल में दबाव को कम करने हेतु हमारे पूर्वज द्वारा यह पर्व प्रारम्भ किया गया है। उन्होने बताया कि हमारे देश में 5000 प्रकार की संस्कृति समूह है जो विविधता में भी एक है।
प्रो0 नौटियाल ने लोकल पर्व, भोजन, अनाज आदि को संरक्षित करने की बात कही, उन्होने कहा आज हमें कोविड-19 के प्रभाव को कम करने हेतु स्थानीय अनाज, जंगली फलों आदि के इस्तेमाल करने तथा उसको संरक्षित करने की आवश्यकता है। उन्होंने विलुप्त हुई प्रजातियों में च्वींडा, कोंणी आदि की महत्ता एवं पौष्टिकता के विषय में जानकारी दी, उन्होनें कहा कि हरड जैसा पादप पेट विकार को ठीक करने में सहायक है अतः इसे भी संरक्षित करने की आवश्यकता है।
प्रो0 नौटियाल ने बुर्जुग प्रतिभागियों को अपने पारंपरिक ज्ञान, आदि को नयी पीढियों में देने का एवं सिखाने की आवश्यकता पर जोर दिया ताकि हम अपनी परम्पराओं आदि को संरक्षित कर सके। प्रो0 नौटियाल ने पर्यावरण संस्थान द्वारा विविध क्षेत्रों में किये गये शोध कार्यों को साझा किया। उन्होनें कहा कि हम सम्पूर्ण हिमालयी क्षेत्रों में विविध कार्य कर रहे है जिनका प्रभाव देश-विदेशों में पड़ रहा है एवं यह कार्य नयी-नयी पाॅलिसी-निर्माण एवं रणनीतियाॅ आदि की संकल्पना में सहयोग दे रहा है। अतः आज जन-सहभागिता एक भौतिक आवश्यकता है ताकि हम क्षेत्र एंव देश विकास में सहयोग दे पायें।
उपरोक्त एक दिवसीय कार्यक्रम में 60 से अधिक ग्रामीणों शोधार्थियों एंव वैज्ञानिकों ने प्रतिभाग किया एवं कार्यक्रम समापन में बहुमूल्य पादपों तेजपात गुड़हल, कनेर सदाबहार, बांज, बोटलब्रुश आदि का सूर्य मंन्दिर एवं आस-पास क्षेत्र में वृहद वृक्षारोपण किया। त्तपश्चात संस्थान के वैज्ञानिकों एवं ग्रामीणों के मध्य क्षेत्रीय विकास हेतु विभिन्न विषयों पर परिचर्चा की गयी तथा भविष्य में संस्थान द्वारा किये जाने वाले शोध एवं विकास कार्यों की रूपरेखा बनाने में ग्रामीणों के सहयोग की अपेक्षा की गयी।
कार्यक्रम के समापन अवसर पर संस्थान के वैज्ञानिक डा0 सतीश आर्या ने कार्यक्रम को सफल बनाने हेतु सभी प्रतिभागियों को धन्यवाद दिया एवं भविष्य में भी इस प्रकार के कार्यक्रमों को क्षेत्रीय विकास हेतु आयोजित करने का आश्वासन दिया। उन्होने बताया कि इसी सन्दर्भ में संस्थान द्वारा पिथौरागढ़ जिले के लुम्ती एवं दिगतोली में चौड़ी पत्तेदार वृक्ष प्रजातियों का रोपण आज किया जा रहा है। इस प्रकार के प्रयास पूरे राज्य में प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण एवं संवर्धन में सहायक सिद्ध होगे।