ब्रोकली (Brokley)का उत्पादन से हो सकती है अच्छी आजीविका
देहरादून, 5 मार्च 2020
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला दून विश्वविद्यालय
पौष्टिक गुणों से भरपूर और स्वादिष्ट सलाद के रूप में उपयोग होने वाली ब्रोकली(Brokley) अब देहरादून जिले के काश्तकारों की आजीविका का साधन बनेगी। इसके लिए कृषि विज्ञान एवं अनुसंधान केंद्र काश्तकारों को उन्नत बीज और उत्पादन का तकनीकि का प्रशिक्षण देगा।
काश्तकारों को ब्रोकली ( Brokley ) की खेती के लिए करना होगा जागरुक
देहरादून जिले में अब तक गिने चुने क्षेत्रों में चुनिंदा काश्तकार ही ब्रोकली (Brokley)पैदा कर रहे हैं। कृषि विज्ञान केंद्र की इस पहल से काश्तकार बड़े पैमाने पर ब्रोकली का उत्पादन कर उसे बाजार में बेच सकेंगे। कृषि विज्ञान एवं अनुसंधान केंद्र सुईं में विगत दस वर्षों से ब्रोकली पैदा की जा रही है।
अनुसंधान का लाभ काश्तकारों तक पहुंचाने के लिए केंद्र की ओर से जिले के 100 प्रगतिशील काश्तकारों को ब्रोकली(Brokley) उत्पादन का प्रशिक्षण देकर उन्हें पर्वतीय परिवेश में पैदा होने वाला बीज उपलब्ध कराया जा रहा है लेकिन लाभ कम होने के कारण अधिकांश काश्तकार इसके उत्पादन में रुचि नहीं दिखा रहे हैं।
ब्रोकली(Brokley) की अच्छी फसल से प्रति हेक्टेयर करीब 160—180 क्विंटल उपज मिल जाती है। ब्रोकली की अगर तैयार होने के बाद देर से कटाई की जाएगी तो वह ढीली हो कर बिखर जाएगी और उस की कली खिल कर पीला रंग दिखाने लगेगी।
ब्रोकली(Brokley) के ऐसे खिले हुए गुच्छो का बाजार मे अच्छा भाव नही मिलता और किसान को हानि होती है। ब्रोकली के मुख्य गुच्छे को काटने के बाद इसी पौधों में दूसरी नई.नई शाखाएं निकल आती हैं। इन शाखाओं पर कई छोटे गुच्छे लगते है।
ये विदेशी सब्जियां भी हैं गुणों की खान
अगर ढांचागत अवस्थापना के साथ बेरोजगारी उन्मूलन की नीति बनती है तो यह पलायन रोकने में कारगर होगी उत्तराखण्ड हिमालय राज्य होने के कारण बहुत सारे बहुमूल्य उत्पाद जिनकी अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में अत्यधिक मांग रहती है प्रदेश विज्ञान एवं पर्यावरण परिषद को भी पेटेंट करवाया की जरूरत है ।